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हैदराबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में ABVP की आंधी, NSUI वोट पाने के मामले में NOTA से भी पिछड़ी

Student Union Elections 2025: AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के गढ़ हैदराबाद यूनिवर्सिटी में ABVP ने सात साल बाद क्लीन स्वीप किया। सभी 6 पदों पर जीत, NSUI को नोटा से भी कम वोट।

हैदराबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में ABVP की आंधी, NSUI वोट पाने के मामले में NOTA से भी पिछड़ी

ओवैसी के गढ़ में भगवा का जलवा.!

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6:30 PM, Sep 23, 2025

O News हिंदी Desk

Student Union Elections 2025: ओवैसी के गढ़ में ABVP का जलवा: हैदराबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में NSUI को मिली करारी शिकस्त

हैदराबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ चुनाव में सात साल बाद ABVP की धमाकेदार वापसी

हैदराबाद यूनिवर्सिटी (HCU) के छात्रसंघ चुनाव 2025 के नतीजे सभी को चौंकाने वाले रहे। AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी का गढ़ कहे जाने वाले हैदराबाद में इस बार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने क्लीन स्वीप करते हुए सभी 6 पदों पर जीत हासिल की है। वहीं कांग्रेस की छात्र इकाई NSUI को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा और हालत यह रही कि उसे NOTA (नोटा) से भी कम वोट मिले।

यह नतीजे न सिर्फ छात्र राजनीति बल्कि तेलंगाना की मुख्यधारा की राजनीति पर भी असर डाल सकते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर किन कारणों से ABVP ने सात साल बाद यह बड़ी जीत दर्ज की और NSUI व वामपंथी संगठनों का दबदबा क्यों टूट गया।

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ओवैसी का गढ़ और ABVP की जीत

हैदराबाद लंबे समय से AIMIM का गढ़ माना जाता है। लोकसभा चुनावों में यहां असदुद्दीन ओवैसी लगातार 2004 से जीतते आ रहे हैं। मुस्लिम वोटरों का बड़ा समर्थन AIMIM को मिलता है और यही कारण है कि शहर में उनका राजनीतिक प्रभाव बेहद मजबूत है।

लेकिन इसी हैदराबाद यूनिवर्सिटी में ABVP ने जबरदस्त चुनावी रणनीति बनाकर ऐसी जीत दर्ज की कि सभी हैरान रह गए। सात साल बाद ABVP ने न केवल वापसी की बल्कि छात्रसंघ की अध्यक्ष से लेकर खेल सचिव तक सभी सीटों पर कब्जा कर लिया।

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ABVP की रणनीति क्यों सफल रही?

इस चुनाव में ABVP ने तीन बड़े मुद्दों पर छात्रों का ध्यान खींचा:

  1. ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों’ का विरोध – कैंपस में बीते कुछ सालों से देशविरोधी नारेबाजी और विवादित कार्यक्रमों पर बवाल होता रहा। ABVP ने इसे मुद्दा बनाकर छात्रों को विश्वास दिलाया कि वह कैंपस को सकारात्मक माहौल देगी।
  2. कैंपस हिंसा और गुटबाजी – पिछले चुनावों में SFI (स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया) और ASA (अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन) का गठबंधन जीतता रहा, लेकिन इस बार आपसी मतभेद के कारण उनका गठबंधन टूट गया। ABVP ने इसे भुनाया और एकजुट होकर चुनाव लड़ा।
  3. छात्र हित और सुविधाओं पर जोर – ABVP ने हॉस्टल, पुस्तकालय और खेल सुविधाओं को बेहतर करने का वादा किया। साथ ही ‘समान अवसर’ और ‘सुरक्षित कैंपस’ पर भी फोकस किया।
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SFI-ASA गठबंधन क्यों टूटा?

पिछले छह साल से हैदराबाद यूनिवर्सिटी में SFI और ASA का दबदबा था। दोनों संगठनों का गठबंधन मजबूत माना जाता था, खासकर 2016 में रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद ASA को काफी सहानुभूति और समर्थन मिला।

लेकिन इस बार हालात अलग थे।

  1. ASA चाहता था कि मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन और जमात-ए-इस्लामी की छात्र इकाई फ्रेटरनिटी को गठबंधन में शामिल किया जाए।
  2. SFI इसके लिए तैयार नहीं हुआ और आरोप लगाया कि ASA मुस्लिम छात्रों को ज्यादा तवज्जो देना चाहता है।
  3. दूसरी ओर, ASA का आरोप था कि SFI जानबूझकर मुस्लिम छात्रों को हाशिये पर धकेल रहा है।

इस आपसी खींचतान ने गठबंधन को तोड़ दिया और वोटों का बंटवारा हो गया। इसका सीधा फायदा ABVP को मिला।

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NSUI का बुरा हाल – नोटा से भी कम वोट!

तेलंगाना में इस समय कांग्रेस की सरकार है, लेकिन हैदराबाद यूनिवर्सिटी में कांग्रेस की छात्र इकाई NSUI का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा।

  1. NSUI को इस बार NOTA से भी कम वोट मिले।
  2. एक बड़ा कारण यह भी रहा कि यूनिवर्सिटी की जमीन को लेकर कांचा गाचीबोवली विवाद में कांग्रेस पर गंभीर सवाल उठे।
  3. छात्रों का एक बड़ा वर्ग NSUI से पूरी तरह नाराज दिखा।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह नतीजे तेलंगाना में कांग्रेस के लिए चेतावनी की घंटी हो सकते हैं।

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रोहित वेमुला केस का असर और छात्र राजनीति

हैदराबाद यूनिवर्सिटी में छात्र राजनीति की चर्चा रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद पूरे देश में हुई थी। 2016 में वेमुला के सुसाइड के बाद ASA और SFI को मजबूत समर्थन मिला और लगातार चुनावों में उनका दबदबा बना रहा।

2018 में ABVP ने पहली बार जीत दर्ज की थी, लेकिन उसके बाद से लगातार हार का सामना करना पड़ा। इस बार ASA और SFI के अलग होने के कारण ABVP को पूरा फायदा मिल गया।

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ABVP पैनल से कौन-कौन जीता?

इस बार ABVP के पैनल ने सभी पदों पर कब्जा किया:

  1. अध्यक्ष: शिवा पालेपु (पीएचडी शोधार्थी, पशु जीव विज्ञान)
  2. उपाध्यक्ष: देवेंद्र (पीएचडी स्टूडेंट)
  3. महासचिव: श्रुति प्रिया (पीएचडी अर्थशास्त्र)
  4. संयुक्त सचिव: सौरभ शुक्ला (एमबीए स्टूडेंट)
  5. सांस्कृतिक सचिव: वीनस (इंटीग्रेटेड एमए, भाषा विज्ञान)
  6. खेल सचिव: ज्वाला (पीएचडी हिंदी)

इस जीत के बाद ABVP ने कैंपस में छात्रों के लिए नई नीतियां और गतिविधियों की घोषणा करने की बात कही है।

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भविष्य की राजनीति पर असर

विशेषज्ञ मानते हैं कि HCU के ये नतीजे आने वाले दिनों में दो स्तर पर असर डाल सकते हैं:

  1. राष्ट्रीय स्तर पर – ABVP की जीत से बीजेपी और RSS खेमे को मजबूती मिलेगी। इससे देशभर के कैंपसों में ABVP का मनोबल बढ़ेगा।
  2. तेलंगाना की राजनीति पर – NSUI की हार कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है। AIMIM और TRS (BRS) का दबदबा पहले से ही मजबूत है, ऐसे में कांग्रेस का छात्र राजनीति से गायब होना गंभीर संकेत है।
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निष्कर्ष

हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ चुनाव 2025 ने कई नए संदेश दिए हैं। ओवैसी के गढ़ में ABVP की जीत यह बताती है कि छात्र राजनीति में गठबंधन, मुद्दे और रणनीति कितनी अहम भूमिका निभाते हैं।

जहां एक ओर ABVP ने राष्ट्रवाद और छात्र हितों पर फोकस करके जीत हासिल की, वहीं दूसरी ओर SFI-ASA की गुटबाजी और NSUI की कमजोरियों ने उन्हें हार का स्वाद चखा दिया।

अब देखने वाली बात होगी कि क्या ABVP इस जीत को लंबे समय तक बरकरार रख पाती है या फिर आने वाले चुनावों में वामपंथी और दलित संगठनों की वापसी होती है।

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Source: News 18

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