Delhi High Court Big Decision: अब किरायेदारों को मिली आज़ादी, मकान मालिक की NOC हुई बेकार?
Delhi High Court’s shocking ruling! Tenants no longer need landlord’s NOC to reduce electricity load. Know how this changes tenant rights forever...

Delhi High Court Big Decision
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12:57 PM, Sep 25, 2025
O News हिंदी Desk
दिल्ली हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अब किरायेदारों को बिजली लोड कम कराने के लिए मकान मालिक की NOC की जरूरत नहीं
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में रहने वाले लाखों किरायेदारों के लिए हाईकोर्ट का एक अहम फैसला बड़ी राहत लेकर आया है। अक्सर देखा जाता है कि किराए के मकान में रहने वाले लोगों को बिजली कनेक्शन, लोड बदलवाने या बिल से जुड़ी समस्याओं में मकान मालिक की अनुमति पर निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन अब यह बाध्यता खत्म हो गई है। दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि किरायेदार, जो वास्तव में बिजली का उपभोक्ता है, उसे अपनी जरूरत के अनुसार बिजली लोड कम कराने के लिए मकान मालिक की NOC (No Objection Certificate) की जरूरत नहीं होगी।
यह फैसला न सिर्फ दिल्ली बल्कि देशभर के किरायेदारों के लिए एक मिसाल साबित हो सकता है। आइए जानते हैं फैसले की पूरी पृष्ठभूमि, कानूनी आधार और आम किरायेदारों के लिए इसके मायने।
मामला कैसे शुरू हुआ?
यह केस दिल्ली के नामी अंसल टॉवर से जुड़ा हुआ है। यहां रहने वाले एक किरायेदार ने हाईकोर्ट का दरवाजा इसलिए खटखटाया क्योंकि उसका बिजली मीटर 16 KVA लोड पर चल रहा था, जबकि उसकी वास्तविक खपत इससे काफी कम थी। भारी लोड के कारण हर महीने उसका बिजली बिल जरूरत से ज्यादा आ रहा था।
किरायेदार ने बिजली कंपनी बीएसईएस (BSES) से लोड कम करने की गुहार लगाई। लेकिन कंपनी ने मकान मालिक की अनुमति न होने का हवाला देकर आवेदन खारिज कर दिया। यह मामला अदालत पहुंचा और फिर न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की एकल पीठ ने किरायेदार के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा –
- बिजली का असली उपभोक्ता किरायेदार है, मकान मालिक नहीं।
- उपभोग की जिम्मेदारी उसी व्यक्ति की है जो वास्तव में बिजली का इस्तेमाल करता है।
- यदि किरायेदार कम खपत करता है, तो उसे पुराने ज्यादा लोड के कारण भारी बिल चुकाना पड़े, यह न तो न्यायसंगत है और न ही आर्थिक रूप से तर्कसंगत।
- इसलिए, किरायेदार को यह पूरा अधिकार है कि वह अपनी आवश्यकता के अनुसार बिजली लोड कम करवा सके।
साथ ही, कोर्ट ने बीएसईएस को आदेश दिया कि चार सप्ताह के भीतर किरायेदार का बिजली लोड कम करने की प्रक्रिया पूरी की जाए।
बीएसईएस का तर्क खारिज
बीएसईएस का कहना था कि बिना मकान मालिक की सहमति बिजली लोड में बदलाव नहीं किया जा सकता। लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को “अनावश्यक अड़चन” करार दिया।
कोर्ट ने कहा कि यह व्यवस्था किरायेदारों के अधिकारों के खिलाफ है। बिजली उपभोक्ता का अधिकार है कि वह अपनी खपत के अनुसार सुविधा प्राप्त करे। मकान मालिक की मंजूरी को अनिवार्य बनाना न्याय और तर्क दोनों के खिलाफ है।
संपत्ति विवाद का असर नहीं
दिल्ली हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश सिर्फ बिजली उपभोग के अधिकार से जुड़ा है। इसका संपत्ति के स्वामित्व, ट्रांसफर या वसीयत से जुड़े विवादों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
यानि यदि किसी फ्लैट या मकान का मालिकाना हक विवादित है, तब भी किरायेदार अपनी बिजली खपत को लेकर सीधे बिजली कंपनी से संपर्क कर सकता है।
फैसले की अहमियत क्यों है?
भारत के महानगरों में लाखों लोग किराए के घरों में रहते हैं। कई बार मकान मालिक, बिजली या पानी जैसी बुनियादी जरूरतों पर भी अपनी मनमानी थोपते हैं।
- बिजली लोड का मामला खासतौर पर किरायेदारों को आर्थिक नुकसान पहुंचाता है।
- ज्यादा लोड होने से न सिर्फ फिक्स चार्ज बढ़ जाते हैं बल्कि हर महीने का बिल भी भारी पड़ता है।
- पहले किरायेदार मकान मालिक के दबाव में रहते थे, लेकिन अब कोर्ट के फैसले से उन्हें राहत मिलेगी।
इस फैसले से क्या बदल जाएगा?
- NOC की जरूरत खत्म – अब किरायेदार को बिजली लोड कम करने के लिए मकान मालिक से इजाजत नहीं लेनी होगी।
- सीधा अधिकार – किरायेदार सीधे बिजली कंपनी से संपर्क कर अपनी खपत के अनुसार लोड घटा सकता है।
- आर्थिक राहत – जरूरत से ज्यादा बिल का बोझ अब नहीं उठाना पड़ेगा।
- देशभर में मिसाल – यह फैसला अन्य राज्यों और शहरों में भी किरायेदारों के अधिकार को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम है।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला एक प्रो-टेनेंट (Pro-Tenant) दृष्टिकोण को मजबूत करता है। यह दिखाता है कि अदालतें किरायेदारों के बुनियादी अधिकारों को भी महत्व देती हैं।
ऊर्जा मामलों के जानकारों के मुताबिक, यह निर्णय बिजली कंपनियों के लिए भी राहत भरा है क्योंकि अब उन्हें अनावश्यक विवादों और कानूनी झमेलों से नहीं गुजरना पड़ेगा।
आम लोगों की प्रतिक्रिया
- दिल्ली के एक किरायेदार ने कहा – “हम सालों से मकान मालिक की मनमानी झेल रहे थे। अब कम से कम बिजली के मामले में आजादी मिल गई है।”
- वहीं, कुछ मकान मालिकों का कहना है कि इससे उनके नियंत्रण में कमी आएगी, लेकिन आम सहमति यही है कि यह फैसला न्यायसंगत है।
पूरे देश के लिए मिसाल
भले ही यह फैसला दिल्ली हाईकोर्ट का है, लेकिन इसका असर देशभर में महसूस किया जाएगा। मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, पटना और अन्य शहरों में जहां किराए पर रहना आम है, वहां भी किरायेदार इस फैसले का हवाला देकर अपने अधिकार मांग सकते हैं।
निचोड़
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला किरायेदारों के लिए एक बड़ी जीत है। मकान मालिकों की अनावश्यक दखलअंदाजी पर यह कानूनी रोक लगाता है और उपभोक्ता अधिकारों को मजबूत करता है।
अब किरायेदार अपनी खपत और जरूरत के हिसाब से बिजली लोड घटवा सकता है, और इसके लिए उसे मकान मालिक की NOC की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।
यह फैसला दिखाता है कि न्यायपालिका आम नागरिकों की रोजमर्रा की परेशानियों को भी गंभीरता से सुनती है और उनके अधिकारों की रक्षा करती है।
Source: Punjab Keshri