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‘मेरा ऐसा करने का मन नहीं था...’, CJI गवई पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर बोले – “यह ईश्वरीय कृत्य था” | Supreme Court News | Onews Hindi

CJI बीआर गवई पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर ने घटना को ‘ईश्वरीय कृत्य’ बताया। कहा – “मेरा मन नहीं था, यह परमात्मा ने मुझसे कराया।” बार काउंसिल के ‘तुगलकी फरमान’ पर भी जताई आपत्ति। पढ़िए पूरी खबर विस्तार से।

‘मेरा ऐसा करने का मन नहीं था...’, CJI गवई पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर बोले – “यह ईश्वरीय कृत्य था” | Supreme Court News | Onews Hindi

वकील राकेश किशोर

delhi

5:49 PM, Oct 7, 2025

O News हिंदी Desk

‘मेरा ऐसा करने का मन नहीं था…’ — CJI गवई पर जूता फेंकने वाले वकील राकेश किशोर ने बताई पूरी कहानी

नई दिल्ली | Onews Hindi Desk — सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को उस समय सनसनी फैल गई जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) जस्टिस बी. आर. गवई पर एक वकील ने जूता फेंक दिया। अब इस चौंकाने वाली घटना के पीछे की कहानी सामने आई है। आरोपी वकील राकेश किशोर ने खुद खुलकर बताया कि आखिर उन्होंने ऐसा कदम क्यों उठाया — और जो कहा, उसने पूरे न्यायिक तंत्र को झकझोर दिया।

वकील ने इस कृत्य को ‘ईश्वरीय आदेश’ बताया और कहा कि “मेरा ऐसा करने का मन नहीं था, यह सब परमात्मा ने मुझसे कराया।” साथ ही उन्होंने बार काउंसिल द्वारा वकालत का लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई को ‘तुगलकी फरमान’ करार दिया।

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राकेश किशोर बोले — “यह मेरे द्वारा नहीं, परमात्मा द्वारा कराया गया”

वकील राकेश किशोर का कहना है कि यह घटना पूरी तरह से ईश्वरीय प्रेरणा से हुई। उन्होंने कहा —

“मेरे मन में ऐसा करने की कोई भावना नहीं थी। यह सब कुछ मेरे द्वारा नहीं किया गया, बल्कि परमात्मा ने मुझसे कराया। शायद इस घटना के पीछे कोई संदेश छिपा है जिसे मैं दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा था।”

उन्होंने दावा किया कि इस पूरे विवाद की जड़ एक पीआईएल (Public Interest Litigation) है, जिसकी सुनवाई 16 सितंबर को हुई थी। उस याचिका में एक प्राचीन मूर्ति की मरम्मत से जुड़ी मांग की गई थी।

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सनातन धर्म के अपमान का लगाया आरोप

राकेश किशोर ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि CJI गवई ने सुनवाई के दौरान “सनातन धर्म का अपमान” किया। उन्होंने बताया कि मामला खजुराहो मंदिर में भगवान विष्णु की सात फीट ऊंची टूटी मूर्ति से जुड़ा था। यह मूर्ति विदेशी आक्रमणों के समय क्षतिग्रस्त हो गई थी।

राकेश ने कहा —

“मैं खुद उस मूर्ति के पास जाकर रो चुका हूं। इतनी सुंदर मूर्ति का सिर धड़ से अलग देखकर आत्मा रो उठी। जब इस मूर्ति की मरम्मत की बात उठाई गई, तो CJI ने कहा कि ‘तुम इतने बड़े भगवान के भक्त हो तो मूर्ति से कहो कि वो खुद कुछ कर लें।’ यह सुनकर मुझे गहरा दुख हुआ।”

उनके मुताबिक, अदालत ने न केवल याचिका खारिज कर दी बल्कि टिप्पणी ने उनके धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई।

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“बुलडोजर से देश नहीं चलेगा” वाले बयान से भी नाराज़गी

वकील ने कहा कि विवाद खत्म हो चुका था, लेकिन कुछ दिन पहले CJI गवई के मॉरीशस में दिए बयान ने उन्हें और आहत कर दिया। उन्होंने कहा —

“तीन दिन पहले उन्होंने कहा कि बुलडोजर से देश नहीं चलेगा। अब सबको पता है कि बुलडोजर किन पर चल रहा है और क्यों चल रहा है। जो अवैध निर्माण करते हैं, जो जमीन पर कब्जा करते हैं — उन्हीं पर कार्रवाई हो रही है। अगर किसी को लगता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है, तो सामने आए, पर कोई नहीं आता क्योंकि वे जानते हैं कि वे गलत हैं।”

उनका कहना था कि यह बयान न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है।

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“बार काउंसिल का फैसला तुगलकी फरमान”

घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वकील राकेश किशोर का लाइसेंस रद्द कर दिया। इस पर उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया दी —

“चेयरमैन ने मुझे रात में ही पत्र भेज दिया। मैं इसे ‘तुगलकी फरमान’ कहता हूं। एडवोकेट एक्ट 1961 के सेक्शन 35 के अनुसार, किसी भी वकील को सस्पेंड करने से पहले कारण बताओ नोटिस दिया जाना चाहिए, और फिर डिसिप्लिनरी कमेटी के सामने उसे अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन मुझे न कोई नोटिस मिला, न सुनवाई का मौका।”

राकेश किशोर ने आगे कहा कि अगर वह इस निर्णय को चुनौती भी दें, तो भी कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि “कमेटी में वही लोग होंगे जिन पर सवाल उठाया गया है।”

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“अब आगे क्या होगा, यह परमात्मा तय करेंगे”

अपने करियर और भविष्य पर सवाल पूछे जाने पर राकेश किशोर ने शांत स्वर में कहा —

“अब मैं आगे क्या करूंगा, यह परमात्मा पर निर्भर है। अगर उन्होंने मेरे करियर को समाप्त करने की सोची है, तो वे ऐसा कर सकते हैं। पर मैं जानता हूं कि जो कुछ हुआ, वो भी उसी की इच्छा से हुआ।”

उन्होंने संकेत दिए कि वह फिलहाल कोई कानूनी कदम उठाने के बजाय “आध्यात्मिक मार्गदर्शन” का इंतजार करेंगे।

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मामला अब देशभर में चर्चा का विषय

सुप्रीम कोर्ट जैसी जगह पर ऐसी घटना ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। एक तरफ न्यायपालिका की गरिमा का सवाल है, तो दूसरी ओर अभिव्यक्ति की सीमा पर भी चर्चा तेज है। सोशल मीडिया पर यह मामला तेजी से वायरल हो गया है, जहां लोग दो हिस्सों में बंटे नजर आ रहे हैं — कुछ लोग वकील की हरकत को ‘सनातन धर्म की रक्षा’ बता रहे हैं, तो कुछ इसे ‘न्यायालय की अवमानना’ करार दे रहे हैं।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि चाहे भावना कितनी भी गहरी क्यों न हो, अदालत में ऐसा व्यवहार अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है। वहीं कुछ धार्मिक संगठनों ने कहा कि यदि वकील की बात में सच्चाई है, तो कोर्ट को भी इस पर आत्ममंथन करना चाहिए।

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निष्कर्ष

वकील राकेश किशोर का बयान इस समय पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। उन्होंने जो कहा, वह न केवल न्यायपालिका बल्कि समाज की धार्मिक भावनाओं को भी छू गया है। फिलहाल उनका वकालत लाइसेंस रद्द किया जा चुका है, लेकिन उन्होंने साफ कहा है कि वे “सत्य और सनातन धर्म की रक्षा” के लिए किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे।

अब देखना यह होगा कि क्या यह मामला केवल एक व्यक्तिगत गुस्से की अभिव्यक्ति था या वाकई में इसके पीछे कोई गहरा संदेश छिपा है जैसा कि राकेश किशोर का दावा है।

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Source: Ndtv

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