SUPREME COURT में वकील ने CJI GAVAI पर फेंका जूता | सनातन का अपमान नहीं सहेंगे नारे से मचा हड़कंप | O NEWS HINDI
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को बड़ा हड़कंप मच गया जब एक वकील ने ‘सनातन का अपमान नहीं सहेंगे’ के नारे लगाते हुए CJI बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। सुरक्षाकर्मियों ने उसे रोक लिया। जानिए CJI गवई ने क्या कहा और आगे क्या कार्रवाई होगी।

SUPREME COURT में वकील ने CJI GAVAI पर फेंका जूता
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1:13 PM, Oct 6, 2025
O News हिंदी Desk
सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की कोशिश से मचा हड़कंप, CJI गवई ने दिखाई अनुकरणीय शांति
नई दिल्ली: सोमवार सुबह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना दर्ज हो गई, जब एक वकील ने अदालत की मर्यादा तोड़ते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई की ओर जूता फेंकने की कोशिश की। उस वक्त कोर्ट में कई वकील और याचिकाकर्ता मौजूद थे। घटना के बाद कुछ पल के लिए अदालत में सन्नाटा छा गया, लेकिन मौके पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी वकील को काबू में कर लिया।
“सनातन का अपमान नहीं सहेंगे” – नारे से गूंज उठा कोर्ट रूम
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, यह घटना ठीक उस समय हुई जब अदालत एक संवैधानिक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। तभी अचानक एक वकील अपनी सीट से उठा और ऊँची आवाज़ में नारे लगाने लगा — “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे!” उसके बाद उसने जूता निकालकर CJI की ओर फेंकने की कोशिश की। हालांकि, सुरक्षा कर्मियों ने फुर्ती दिखाते हुए उसे रोक लिया और अदालत के बाहर ले गए।
CJI गवई ने दिखाई धैर्य और कहा — “इससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता”
इस अप्रत्याशित घटना के बावजूद चीफ जस्टिस गवई ने अद्भुत शांति का परिचय दिया। उन्होंने सुरक्षाकर्मियों को निर्देश दिया कि अदालत की कार्यवाही बिना किसी व्यवधान के जारी रखी जाए। उन्होंने कहा —
“ऐसी घटनाएं न्यायालय को डरा नहीं सकतीं। हम संविधान के अनुसार अपना कार्य करते रहेंगे।”
CJI के इस जवाब ने न केवल अदालत में उपस्थित वकीलों को सुकून दिया बल्कि पूरे न्यायिक तंत्र में उनके संयम की प्रशंसा होने लगी।
वकील की पहचान और संभावित कार्रवाई
सूत्रों के अनुसार, आरोपी वकील की पहचान की जा चुकी है और उसे पुलिस हिरासत में ले लिया गया है। उसके खिलाफ कोर्ट की अवमानना (Contempt of Court) और हमले के प्रयास के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने भी इस घटना की निंदा की है और कहा है कि यह वकील पेशे की गरिमा पर गहरा धब्बा है।
BCI चेयरमैन ने बयान जारी कर कहा —
“किसी भी मतभेद को इस तरह की हिंसक या अपमानजनक हरकत से व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह पेशेवर आचार संहिता का घोर उल्लंघन है।”
सोशल मीडिया पर घटना के बाद मचा बवाल
घटना के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर #CJI_Gavai और #SupremeCourt ट्रेंड करने लगे। कुछ यूज़र्स ने वकील के व्यवहार को ‘न्यायपालिका पर हमला’ बताया, जबकि कुछ ने इसे ‘आवेश में की गई गलती’ कहा। कई लोगों ने यह भी सवाल उठाया कि “क्या धार्मिक भावनाओं के नाम पर कोई अदालत की गरिमा को इस हद तक ठेस पहुंचा सकता है?”
सुप्रीम कोर्ट सुरक्षा पर उठे सवाल
यह घटना सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल खड़ा करती है। हालांकि, अदालत के सूत्रों का कहना है कि सुरक्षा कर्मियों ने त्वरित कार्रवाई कर स्थिति संभाल ली और कोई नुकसान नहीं हुआ। लेकिन यह भी स्पष्ट हुआ कि इस तरह की घटनाओं से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर मनोवैज्ञानिक दबाव डालने की कोशिश की जा सकती है।
न्यायपालिका का धैर्य — लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत
इस पूरी घटना के बाद जिस तरह से CJI गवई ने संयम बनाए रखा, वह भारतीय न्यायपालिका की परिपक्वता का उदाहरण है। यह वही अदालत है जिसने हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की है, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित किया है कि न्यायालय की गरिमा किसी भी हाल में बनी रहे।
एक वरिष्ठ वकील ने कहा —
“अगर देश की सर्वोच्च अदालत में इस तरह का असंयम दिखाया जाएगा तो यह पूरे न्यायिक ढांचे के लिए खतरा बन सकता है। अदालतें भावनाओं से नहीं, संविधान से चलती हैं।”
क्या कोर्ट में ऐसे कृत्य का कोई कानूनी परिणाम होता है?
भारतीय दंड संहिता (IPC) और Contempt of Courts Act, 1971 के तहत अदालत के प्रति अपमानजनक व्यवहार करने या न्यायाधीश पर हमला करने की कोशिश करने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। ऐसे मामलों में अभियुक्त को न केवल जेल की सजा बल्कि बार काउंसिल से लाइसेंस निलंबन का भी सामना करना पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का बयान और अगले कदम
अदालत प्रशासन ने एक संक्षिप्त बयान जारी करते हुए कहा कि न्यायिक कार्यवाही पर किसी तरह का असर नहीं पड़ा और सभी जज सुरक्षित हैं। घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, आरोपी वकील की मानसिक स्थिति की भी जांच की जाएगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह किसी मानसिक या भावनात्मक अस्थिरता से गुजर रहा था या नहीं।
निष्कर्ष: न्यायालय की गरिमा सर्वोपरि
सुप्रीम कोर्ट में हुई यह घटना एक चेतावनी है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान हर नागरिक की जिम्मेदारी है। CJI गवई ने जिस संयम और गरिमा के साथ स्थिति को संभाला, वह न्यायपालिका की उस भावना को दर्शाता है जो संविधान की आत्मा में बसती है — “न्याय सबके लिए समान”।
इस घटना के बाद यह स्पष्ट है कि किसी भी तरह का असंयम या हिंसा न्याय की राह को नहीं रोक सकती। सुप्रीम कोर्ट और उसके जज कानून के अनुसार ही निर्णय देंगे — चाहे बाहरी परिस्थितियाँ कैसी भी हों।
Source: News 18