Sambhal News: संभल मस्जिद ध्वस्तीकरण पर हाईकोर्ट का बड़ा फैसला | Muslim पक्ष को झटका
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल की गौसुलवरा मस्जिद पर चल रहे ध्वस्तीकरण पर रोक से इनकार किया। मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज, अब ट्रायल कोर्ट में अपील होगी।

Sambhal News: संभल मस्जिद , Muslim पक्ष को झटका
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1:43 PM, Oct 4, 2025
O News हिंदी Desk
क्या टूटेगी संभल की मस्जिद? हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका, मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका
संभल, उत्तर प्रदेश | रिपोर्ट – O News Hindi
उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले की गौसुलवरा मस्जिद (Ghausulwara Masjid) को लेकर चल रहे विवाद ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। मस्जिद कमिटी द्वारा ध्वस्तीकरण (Demolition) रोकने के लिए दायर याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट कहा कि याची को पहले ट्रायल कोर्ट में अपील करनी चाहिए। इस फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है, वहीं प्रशासन ने कहा है कि अवैध निर्माण पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
हाईकोर्ट का रुख: याचिका खारिज, ट्रायल कोर्ट में अपील का रास्ता
इलाहाबाद हाईकोर्ट में शुक्रवार को जस्टिस दिनेश पाठक की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। मस्जिद के मुतवल्ली (caretaker) और मस्जिद कमिटी की ओर से अधिवक्ता अरविंद कुमार त्रिपाठी और शशांक श्री त्रिपाठी ने दलील दी कि प्रशासन का ध्वस्तीकरण आदेश गैरकानूनी है और मस्जिद की जमीन वक्फ बोर्ड में दर्ज है।
हालांकि, अदालत ने मस्जिद कमिटी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में प्राथमिक अपील ट्रायल कोर्ट में ही दायर की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उचित प्रक्रिया से अपील करना ही सही कानूनी रास्ता है।
राज्य सरकार की ओर से चीफ स्टैंडिंग काउंसिल जे.एन. मौर्या और स्टैंडिंग काउंसिल आशीष मोहन श्रीवास्तव ने दलील दी कि मस्जिद और उसके पास बना बारात घर सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बना है। इसीलिए प्रशासन ने ध्वस्तीकरण का आदेश जारी किया था।
विवाद की जड़: सरकारी जमीन पर बना बारात घर और मस्जिद का हिस्सा
संभल जिले के गौसुलवरा इलाके में मौजूद मस्जिद के पास एक बारात घर और अस्पताल भी बनाया गया था। प्रशासन का दावा है कि ये निर्माण सरकारी भूमि और तालाब की जमीन पर किए गए हैं। राजस्व अभिलेखों में इन जमीनों को सार्वजनिक उपयोग की भूमि बताया गया है।
दरअसल, यह विवाद 2024 में तब शुरू हुआ जब प्रशासन ने इस मस्जिद और उसके आस-पास बने ढांचों का सर्वे कराया। रिपोर्ट में पाया गया कि कुछ हिस्से अवैध निर्माण की श्रेणी में आते हैं। इसी के बाद ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इसे अदालत में चुनौती दे दी।
हाईकोर्ट की छुट्टी में भी हुई सुनवाई
दिलचस्प बात यह है कि इस मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट की अर्जेंट बेंच छुट्टी के दिन भी बैठी। अदालत ने मस्जिद कमिटी से जमीन से जुड़े सभी दस्तावेज पेश करने को कहा। शुक्रवार को हुई सुनवाई में जब यह पाया गया कि दस्तावेजों में स्पष्ट स्वामित्व नहीं दिख रहा, तब अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
इस फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष को तत्काल राहत नहीं मिल सकी। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद कमिटी चाहे तो ट्रायल कोर्ट में अपील दाखिल करे और वहीं से राहत मांगे।
ध्वस्तीकरण के लिए चुना गया था दशहरे का दिन
संभल प्रशासन ने 2 अक्टूबर — यानी गांधी जयंती और दशहरे के दिन — ध्वस्तीकरण की तारीख तय की थी। इस निर्णय ने विवाद को और भड़का दिया, क्योंकि धार्मिक दृष्टि से यह संवेदनशील दिन था।
प्रशासन का कहना है कि 30 दिन का नोटिस पहले ही दिया गया था, लेकिन तय समय में कोई वैध दस्तावेज नहीं प्रस्तुत किए गए। ऐसे में ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ाई गई।
हालांकि, बढ़ते तनाव और भीड़ की संभावना को देखते हुए भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। प्रशासन का दावा है कि किसी भी अप्रिय स्थिति से बचने के लिए सभी एहतियाती कदम उठाए गए।
मस्जिद कमिटी ने खुद तोड़ा अवैध हिस्सा
विवाद बढ़ने के बाद मस्जिद कमिटी ने स्वयं ही मस्जिद के उस हिस्से को हथौड़े से तोड़ना शुरू कर दिया जिसे प्रशासन अवैध बता रहा था। समिति का कहना है कि “हम खुद कानून का पालन करना चाहते हैं और किसी तरह का टकराव नहीं चाहते।”
हालांकि, स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन की ओर से जिस जमीन को अवैध बताया जा रहा है, वह वर्षों से धार्मिक उपयोग में रही है और अचानक उसे सरकारी जमीन बताना लोगों की आस्था से खिलवाड़ जैसा है।
प्रशासन का पक्ष: “अवैध निर्माण पर नहीं होगा समझौता”
संभल के जिलाधिकारी (DM) ने मीडिया से कहा कि यह कार्रवाई पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया के तहत की जा रही है। उन्होंने कहा —
“यह कोई धार्मिक कार्रवाई नहीं है। मस्जिद हो या मंदिर — अगर कोई निर्माण सरकारी जमीन पर है, तो वह अवैध है। प्रशासन ने केवल सरकारी भूमि को मुक्त कराने की प्रक्रिया शुरू की है।”
वहीं पुलिस अधीक्षक (SP Sambhal) ने बताया कि “हमने सभी पक्षों को नोटिस जारी किया था। मस्जिद कमिटी को भी दस्तावेज जमा करने का पर्याप्त समय दिया गया था, लेकिन कोई संतोषजनक सबूत नहीं मिला।”
मुस्लिम पक्ष में नाराज़गी, लेकिन उम्मीद कायम
हाईकोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम पक्ष में निराशा देखी जा रही है। स्थानीय मुतवल्ली मिनजर अहमद ने कहा —
“हम अदालत का सम्मान करते हैं, लेकिन हमें न्याय चाहिए। मस्जिद वक्फ बोर्ड की संपत्ति है, हम जल्द ही ट्रायल कोर्ट में अपील करेंगे।”
कई सामाजिक संगठनों ने इस फैसले को लेकर चिंता जताई है कि बार-बार धार्मिक स्थलों को लेकर प्रशासनिक कार्रवाई से माहौल खराब हो सकता है। वहीं, कुछ स्थानीय लोग प्रशासन के समर्थन में भी हैं और उनका कहना है कि कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की स्थिति: “Status Quo” बनाए रखने का आदेश
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने संभल मस्जिद मामले में status quo बनाए रखने का आदेश दिया था। यानी, किसी भी तरह का नया निर्माण या तोड़फोड़ तब तक नहीं हो सकती जब तक अंतिम फैसला नहीं आ जाता।
इस आदेश के बाद उम्मीद है कि फिलहाल ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया रोकी जा सकती है, लेकिन प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि वह केवल अदालत के निर्देशों का पालन करेगा।
आगे क्या?
अब यह मामला फिर से निचली अदालत के दायरे में जाएगा। मस्जिद कमिटी ट्रायल कोर्ट में अपील दायर कर सकती है और अपनी जमीन से जुड़े दस्तावेजों के आधार पर अपना पक्ष रखेगी। वहीं, प्रशासन अपने पक्ष में सरकारी अभिलेखों और नोटिस की कॉपी पेश करेगा।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला लंबे समय तक चल सकता है, क्योंकि इसमें धार्मिक स्थल, सरकारी जमीन और वक्फ संपत्ति – तीनों मुद्दे शामिल हैं।
निष्कर्ष
संभल मस्जिद विवाद केवल एक इमारत का नहीं, बल्कि कानून बनाम आस्था की जटिल लड़ाई का प्रतीक बन गया है। हाईकोर्ट ने फिलहाल राहत देने से इनकार कर दिया है, लेकिन मुस्लिम पक्ष की कानूनी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। आने वाले दिनों में यह केस फिर ट्रायल कोर्ट और संभवतः सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा।
देश की नज़रों में अब संभल एक बार फिर चर्चा में है — जहां सवाल सिर्फ मस्जिद का नहीं, बल्कि न्याय और संवेदनशीलता के संतुलन का है।
Source: Patrika