"घुसपैठियों की अब खैर नहीं! केंद्र सरकार का सख्त रुख, कैबिनेट ने अवैध घुसपैठ से हो रहे जनसंख्या बदलाव को रोकने के लिए उठाया कदम।"
केंद्र सरकार ने अवैध घुसपैठ से हो रहे जनसांख्यिकीय बदलावों का अध्ययन करने के लिए उच्चस्तरीय समिति गठित करने का फैसला किया है। पीएम मोदी के "डेमोग्राफी मिशन" ऐलान के बाद यह कदम उठाया गया। असम, बिहार और बंगाल में चुनावी असर भी देखा जा सकता है।

घुसपैठियों की अब खैर नहीं
delhi
12:39 PM, Sep 20, 2025
O News हिंदी Desk
अवैध घुसपैठ से जनसंख्या में बदलाव? केंद्र सरकार का बड़ा फैसला, कैबिनेट मीटिंग में लगी मुहर
नई दिल्ली। देश की राजनीति और सुरक्षा दोनों पर असर डालने वाले मुद्दे अवैध घुसपैठ (Illegal Immigration) पर केंद्र सरकार ने अब निर्णायक कदम उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस भाषण में उठाए गए "डेमोग्राफी मिशन" (Demography Mission) को अब कैबिनेट की मंजूरी मिल चुकी है। इसके तहत एक उच्चस्तरीय समिति बनाई जाएगी, जो देश में अवैध घुसपैठ से हो रहे जनसांख्यिकीय बदलावों (Demographic Changes) का अध्ययन करेगी और आगे की रणनीति तय करेगी।
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब आने वाले महीनों में बिहार, असम और पश्चिम बंगाल जैसे सीमावर्ती राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न केवल सुरक्षा दृष्टिकोण से बल्कि राजनीति के लिहाज से भी बेहद अहम है।
प्रधानमंत्री ने जताई थी चिंता
15 अगस्त के भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कहा था कि देश में "सुनियोजित साजिश" के तहत जनसांख्यिकीय संतुलन बिगाड़ा जा रहा है। अवैध घुसपैठिए न केवल स्थानीय आबादी की जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं बल्कि आदिवासी समुदायों को गुमराह कर उनका सामाजिक ढांचा भी प्रभावित कर रहे हैं।
पीएम ने चेतावनी दी थी कि यदि इस समस्या पर तुरंत ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले समय में यह देश की सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान दोनों के लिए चुनौती बन सकती है। इसी भाषण के बाद केंद्र सरकार ने तेज़ी दिखाई और महज कुछ हफ्तों में ही समिति गठन का प्रस्ताव कैबिनेट तक पहुंच गया।
कैबिनेट मीटिंग में मंजूरी
सूत्रों के मुताबिक, 10 सितंबर को हुई कैबिनेट मीटिंग में यह प्रस्ताव ‘ऑन टेबल एजेंडा’ के रूप में लाया गया और बैठक में इसे हरी झंडी मिल गई। गृहमंत्री अमित शाह ने कैबिनेट को प्रस्ताव का ब्योरा देते हुए बताया कि समिति का मुख्य फोकस सीमावर्ती राज्य (Border States) होंगे, जहां अवैध घुसपैठ सबसे ज्यादा दर्ज की जाती है।
समिति में सुरक्षा एजेंसियों, गृह मंत्रालय, और संबंधित राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल किए जा सकते हैं। उम्मीद है कि अधिसूचना जारी होने के बाद इसकी संरचना और कार्यप्रणाली सार्वजनिक की जाएगी।
अमित शाह की सख्त चेतावनी
गृहमंत्री अमित शाह पहले भी कई मौकों पर इस मुद्दे पर चिंता जता चुके हैं। हाल ही में दिल्ली में आयोजित वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम में उन्होंने कहा था कि सीमावर्ती इलाकों में जनसांख्यिकीय बदलाव एक "सुनियोजित साजिश" का हिस्सा हैं। उन्होंने साफ निर्देश दिए थे कि राज्यों के मुख्य सचिव और सीमा सुरक्षा बल इस खतरे को गंभीरता से लें।
शाह ने यह भी इशारा किया था कि आने वाले दिनों में सरकार इस मुद्दे पर व्यापक नीति लागू कर सकती है। अब कैबिनेट का फैसला उसी दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम माना जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय संदर्भ भी अहम
दिलचस्प बात यह है कि केवल भारत ही नहीं, बल्कि यूरोपियन कमीशन भी जनसांख्यिकीय बदलावों पर अध्ययन कर रहा है। उसने "डेमोग्राफी टूलबॉक्स" नाम से एक व्यापक खाका तैयार किया है, जिसमें कानूनी, नीतिगत और वित्तीय उपाय सुझाए गए हैं। केंद्र सरकार का यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा रहा है, क्योंकि कई देश अब Illegal Immigration Control को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से सीधे जोड़ रहे हैं।
असम और बंगाल में गरमाएगा मुद्दा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले महीनों में अवैध घुसपैठ का मुद्दा चुनावी राजनीति का केंद्र बनने वाला है।
- इस साल बिहार विधानसभा चुनाव हैं, जहां सीमावर्ती जिलों में घुसपैठ का असर पहले से ही देखा जा रहा है।
- 2026 में असम और पश्चिम बंगाल चुनाव होने हैं, जहां यह मुद्दा और तेज़ी से उभर सकता है।
पहले भी उत्तर प्रदेश और असम के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने अपने शोध पत्रों में नेपाल और बांग्लादेश से लगती सीमाओं पर जनसांख्यिकीय बदलाव का जिक्र किया था। यह चिंता अब राजनीतिक विमर्श का अहम हिस्सा बन चुकी है।
जनसांख्यिकी पर असर क्यों खतरनाक?
विशेषज्ञ बताते हैं कि अवैध घुसपैठ सिर्फ कानून-व्यवस्था का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह देश की सामाजिक संरचना, संसाधनों और सुरक्षा पर भी असर डालता है।
- स्थानीय लोगों की जमीन और नौकरियों पर दबाव बढ़ता है।
- सांस्कृतिक और धार्मिक संतुलन प्रभावित होता है।
- सुरक्षा एजेंसियों के लिए आतंकवाद और नक्सलवाद जैसी चुनौतियां और जटिल हो जाती हैं।
विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत और बंगाल जैसे राज्यों में यह असर साफ तौर पर देखा गया है, जहां स्थानीय समुदायों ने कई बार इस मुद्दे पर प्रदर्शन भी किए हैं।
क्या होंगे सरकार के अगले कदम?
फिलहाल समिति का गठन पहला चरण है। इसके बाद सरकार के सामने कई विकल्प होंगे:
- कानूनी प्रावधानों को और मजबूत करना।
- सीमा सुरक्षा बल को अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराना।
- डिजिटल निगरानी (Digital Surveillance) के जरिए सीमा पार गतिविधियों पर नज़र रखना।
- सीमावर्ती राज्यों को विशेष पैकेज और योजनाएं देना ताकि स्थानीय लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जा सके।
विपक्ष क्या कह रहा है?
हालांकि अभी तक विपक्षी दलों की ओर से इस फैसले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जरूर है कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को चुनावी एजेंडा बनाने की तैयारी कर रही है। कांग्रेस और वामपंथी दल पहले भी एनआरसी और सीएए जैसे कदमों का विरोध कर चुके हैं। ऐसे में अवैध घुसपैठ पर बनने वाली नई समिति भी राजनीतिक बहस का हिस्सा बनेगी, यह तय है।
निष्कर्ष
केंद्र सरकार का यह फैसला सुरक्षा, राजनीति और सामाजिक संतुलन—तीनों स्तरों पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है। एक ओर यह देश के सीमावर्ती राज्यों की चिंताओं को संबोधित करता है, वहीं दूसरी ओर यह आने वाले विधानसभा चुनावों में एक बड़ा चुनावी मुद्दा भी बन सकता है।
अब सबकी नज़र उस अधिसूचना पर टिकी है, जिसमें समिति की संरचना और कार्ययोजना का खुलासा होगा। लेकिन इतना तय है कि अवैध घुसपैठ और जनसांख्यिकीय बदलाव आने वाले महीनों में राष्ट्रीय बहस का सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है।
Source: NBT