जय श्री राम बोलने पर तेजप्रताप यादव का ये बयान हो रहा वायरल.!
सीतामढ़ी में तेज प्रताप यादव ने “जय श्रीराम” नारे पर जताई आपत्ति, कहा – “जानकी की धरती पर नारा होना चाहिए ‘जय सियाराम’।”

तेजप्रताप यादव
bihar
2:58 PM, Oct 2, 2025
O News हिंदी Desk
तेज प्रताप यादव ने “जय श्रीराम” पर जताई आपत्ति, कहा – “यह जानकी की धरती है, नारा होना चाहिए ‘जय सियाराम’”
सीतामढ़ी: बिहार की राजनीति में लालू यादव के बड़े बेटे और नए राजनीतिक खिलाड़ी तेज प्रताप यादव ने एक बार फिर सुर्खियां बटोर दी हैं। सीतामढ़ी जिले के रुन्नीसैदपुर में आयोजित एक चुनावी सभा के दौरान जब भीड़ ने “जय श्रीराम” के नारे लगाए, तो तेज प्रताप यादव पल भर में भड़क उठे। मंच पर मौजूद उन्होंने साफ कहा कि जानकी की धरती पर नारा “जय सियाराम” होना चाहिए। इस बयान ने न सिर्फ विरोधियों को चुप कर दिया, बल्कि समर्थकों को जोशीला बना दिया।
“जय श्रीराम” नारे पर भड़के तेज प्रताप
हाल ही में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से बाहर किए जाने और परिवार के साथ बढ़ती दूरी के बीच तेज प्रताप यादव अब अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) के बैनर तले चुनावी राजनीति में कदम रख रहे हैं। इसी सिलसिले में वे सीतामढ़ी पहुंचे और रुन्नीसैदपुर में सभा को संबोधित किया।
सभा के दौरान कुछ लोग उत्साह में आकर जोर-जोर से “जय श्रीराम” के नारे लगाने लगे। तब तेज प्रताप यादव ने माइक उठाया और कहा –
“गलत किया आपने। सिर्फ जय श्रीराम नहीं, नारा ‘जय सियाराम’ होना चाहिए। यह जानकी की धरती है।”
उनका यह बयान सुनते ही सभा में सन्नाटा छा गया, लेकिन कुछ ही देर में भीड़ तालियों और जयकारों से गूंज उठी। इस भावनात्मक पल ने राजनीतिक गलियारों में तहलका मचा दिया।
मिट्टी माथे से लगाकर दिखाया सम्मान
तेज प्रताप यादव सिर्फ नारे बदलने तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने सभा के बीच में मिट्टी उठाई और अपने माथे से लगाते हुए कहा –
“यह जो मिट्टी है, यह माँ धरती की जननी है। इस मिट्टी को कोई नेता मंच से माथे पर नहीं लगाता, लेकिन हम लगाते हैं।”
सीतामढ़ी को माता सीता की जन्मभूमि माना जाता है। तेज प्रताप यादव ने इस भावपूर्ण प्रदर्शन के माध्यम से न केवल स्थानीय गौरव को जोड़ा, बल्कि धार्मिक आस्था को भी सम्मानित किया।
सोशल मीडिया पर वायरल बयान
तेज प्रताप यादव का यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वीडियो में उनके तीखे और स्पष्ट शब्दों ने लोगों की दिलचस्पी बढ़ा दी। राजनीतिक विश्लेषक इसे उनके राजनीतिक परिपक्वता और नई पहचान बनाने की रणनीति के रूप में देख रहे हैं। वहीं कुछ लोगों ने इसे महज चुनावी स्टंट बताया।
हालांकि, इतना तय है कि तेज प्रताप यादव ने ‘जय श्रीराम बनाम जय सियाराम’ की बहस को एक नया मोड़ दे दिया है। यह विषय आने वाले दिनों में बिहार की राजनीतिक बहस का हिस्सा बन सकता है।
विरोधियों को चुप और समर्थकों को जोशीला किया
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि तेज प्रताप का यह बयान सिर्फ नाराजगी नहीं, बल्कि सोच-समझकर किया गया सियासी कदम है। बिहार में अक्सर हिंदुत्व बनाम सामाजिक न्याय की बहस होती रही है।
तेज प्रताप ने राम के साथ सीता का नाम जोड़कर यह संदेश दिया कि उनके राजनीतिक अभियान में धर्म और संस्कृति का संतुलन है। इस कदम ने उनके समर्थकों को उत्साहित किया और विरोधियों को भी चुप करा दिया।
एक राजनीतिक विश्लेषक के अनुसार,
“तेज प्रताप यादव अपने पिता लालू यादव की सामाजिक न्याय की राजनीति को धर्म और संस्कृति के साथ जोड़कर नई पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह उनकी रणनीति उन्हें भीड़ में अलग पहचान दिला सकती है।”
‘सोना का चिड़िया’ बनाने का वादा
सभा के दौरान तेज प्रताप ने अपनी नई पार्टी जनशक्ति जनता दल (JJD) के लिए समर्थन की अपील भी की। उन्होंने कहा कि यदि बिहार में असली परिवर्तन चाहिए तो जनता को उनकी पार्टी को समर्थन देना होगा।
उन्होंने घोषणा की –
“हम शिक्षा के बल पर बिहार को फिर से सोना का चिड़िया बनाएंगे। नया सवेरा आएगा और सामाजिक न्याय जमीन पर उतरेगा।”
यह वादा उनके भाषण को और मजबूत बनाता है और समर्थकों में उम्मीद की नई लहर पैदा करता है।
बिहार की राजनीति में नई हलचल
तेज प्रताप यादव के इस बयान ने पटना से लेकर दिल्ली तक सुर्खियां बटोर दी हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि तेज प्रताप की यह रणनीति न केवल चुनावी मंच पर उनकी अलग पहचान बनाने में मदद करेगी, बल्कि उन्हें भीड़ के बीच एक नए नेता के रूप में स्थापित करेगी।
यह भी देखा जाएगा कि क्या जनता इस भावपूर्ण और सांस्कृतिक संदेश को वोट में बदलती है या नहीं। हालांकि, इतना तय है कि तेज प्रताप यादव ने धार्मिक आस्था और स्थानीय गौरव को जोड़कर बिहार की राजनीति में नया अध्याय खोल दिया है।
निष्कर्ष
सीतामढ़ी की यह सभा साफ संदेश देती है कि तेज प्रताप यादव अब RJD से अलग अपनी राह पर चलने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह दिखा दिया कि बिहार की राजनीति में धर्म, संस्कृति और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन बनाए रखना उनकी रणनीति का हिस्सा है।
‘जय श्रीराम’ बनाम ‘जय सियाराम’ की बहस केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि तेज प्रताप यादव की नई राजनीतिक पहचान और भावनात्मक रणनीति का हिस्सा बन चुकी है। अब देखना यह होगा कि विधानसभा चुनाव में उनके इस कदम का असर कितना सकारात्मक रहेगा।
Source: Prabhat Khabar