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US Army Beard Ban: सिख-मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर संकट, पेंटागन का विवादित आदेश

अमेरिकी रक्षा विभाग की नई नीति के तहत US Army में दाढ़ी रखने की धार्मिक छूट खत्म कर दी गई है। सिख, मुस्लिम और यहूदी समुदायों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया है। जानिए पूरा विवाद।

US Army Beard Ban: सिख-मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक स्वतंत्रता पर संकट, पेंटागन का विवादित आदेश

US Army Beard Ban

अमेरिकी

2:45 PM, Oct 4, 2025

O News हिंदी Desk

US आर्मी में दाढ़ी पर बैन: मुसलमानों-सिखों की धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा या अनुशासन की वापसी?

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🇺🇸 पेंटागन का नया फरमान बना विवाद का कारण

अमेरिकी रक्षा विभाग (Pentagon) ने हाल ही में सेना की नई ग्रूमिंग नीति (Grooming Policy) जारी की है, जिसमें धार्मिक आधार पर दाढ़ी रखने की छूट को लगभग समाप्त कर दिया गया है। इस फैसले ने अमेरिकी सेना में सेवा दे रहे सिख, मुस्लिम और यहूदी सैनिकों के बीच गहरी चिंता और असंतोष पैदा कर दिया है। रक्षा सचिव पीट हेगसेथ द्वारा जारी इस आदेश के बाद अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता, नस्लीय समानता और संवैधानिक अधिकारों पर नई बहस छिड़ गई है।

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 क्या है नई नीति का प्रावधान?

नई ग्रूमिंग नीति के तहत अब सेना को 2010 से पहले के सख्त अनुशासनिक मानकों पर लौटने का निर्देश दिया गया है। यानि, अब से दाढ़ी की छूट "सामान्यतः अनुमत नहीं" होगी। सिर्फ स्पेशल फोर्सेज यूनिट्स को स्थानीय आबादी में घुलने-मिलने के मिशनों के दौरान अस्थायी छूट दी जाएगी।

यह फैसला 1981 के सुप्रीम कोर्ट केस Goldman vs Weinberger की याद दिलाता है, जिसमें कोर्ट ने “सैन्य अनुशासन” को धार्मिक अभिव्यक्ति से ऊपर माना था।

30 सितंबर को मरीन कॉर्प्स बेस क्वांटिको (Quantico) में 800 से अधिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए हेगसेथ ने कहा था:

“हमारे पास नॉर्डिक पगानों की सेना नहीं है।”

इस बयान ने आग में घी डालने का काम किया और कुछ ही घंटों में सभी शाखाओं को आदेश भेजे गए कि 60 दिनों में सभी धार्मिक छूटों को खत्म कर दिया जाए।

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सिख समुदाय ने कहा – ‘यह विश्वासघात है’

इस फैसले का सबसे तीखा विरोध अमेरिकी सिख समुदाय ने किया है। सिख कोअलिशन (Sikh Coalition) ने बयान जारी कर कहा कि यह कदम “वर्षों की समावेशिता और समानता की लड़ाई के साथ विश्वासघात” है।

सिख धर्म में केश (अकटे बाल) पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं। एक सिख सैनिक ने X (Twitter) पर लिखा –

“मेरे केश मेरी पहचान हैं। आज ऐसा लग रहा है जैसे हमें फिर से अपनी आस्था और सेवा के बीच चुनना पड़ेगा।”

सिखों का अमेरिकी सेना से जुड़ाव कोई नया नहीं है। 1917 में भगत सिंह थिंड पहले सिख सैनिक बने जिन्हें पगड़ी पहनकर सेवा की अनुमति मिली थी। बाद में 2016 में कैप्टन सिमरतपाल सिंह और 2022 में सिंह बनाम बर्गर (Singh vs Berger) मामले में अदालत ने सिख सैनिकों के दाढ़ी और पगड़ी रखने के अधिकार की पुष्टि की थी।

सिख कोअलिशन ने कहा कि यह दावा गलत है कि दाढ़ी सैन्य उपकरणों, खासकर गैस मास्क के इस्तेमाल में बाधा बनती है, क्योंकि “सिख सैनिक पहले भी सभी आवश्यक टेस्ट पास कर चुके हैं।”

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मुस्लिम और यहूदी सैनिकों की भी चिंता बढ़ी

यह फैसला सिर्फ सिखों तक सीमित नहीं है। मुस्लिम सैनिकों के लिए दाढ़ी रखना धार्मिक दायित्व माना जाता है, वहीं ऑर्थोडॉक्स यहूदी सैनिकों के लिए यह उनकी पवित्र परंपरा का हिस्सा है।

CAIR (Council on American-Islamic Relations) ने रक्षा सचिव को पत्र लिखकर सवाल उठाया:

“क्या अमेरिकी सेना अब भी धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देगी, या यह अधिकार भी अनुशासन की भेंट चढ़ जाएगा?”

CAIR ने अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन (First Amendment) का हवाला दिया और कहा कि यह नीति “धार्मिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन” है।

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US army

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नस्लीय पहलू भी आया सामने

नई नीति केवल धर्म तक सीमित नहीं है, इसका असर नस्लीय आधार पर भी दिख सकता है। कई अफ्रीकी-अमेरिकी सैनिकों को अब तक दाढ़ी रखने की चिकित्सकीय छूट दी जाती थी क्योंकि वे “Pseudofolliculitis Barbae” नामक त्वचा रोग से ग्रसित होते हैं, जिसमें बार-बार शेव करने से घाव बन जाते हैं।

अब यह छूट भी समाप्त की जा रही है, जिससे काले सैनिकों में भी नाराज़गी है। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह फैसला “धर्म और नस्ल के आधार पर भेदभाव” को बढ़ावा दे सकता है।

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मानवाधिकार संगठन बोले – यह समावेशिता पर हमला है

कई मानवाधिकार संगठनों और धार्मिक समूहों ने इसे अमेरिकी सेना की समावेशिता और विविधता के खिलाफ कदम बताया है। 2017 में जारी Army Directive 2017-03 ने सिखों, मुसलमानों और यहूदियों के लिए स्थायी छूट की व्यवस्था की थी। अब इस नीति के पलटने से सेना में समानता, भरोसे और विविधता की भावना को गहरी चोट लग सकती है।

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा –

“यह निर्णय न केवल धार्मिक स्वतंत्रता को कमजोर करता है, बल्कि यह संदेश देता है कि अमेरिकी सेना में केवल एक जैसी पहचानें ही स्वीकार्य हैं।”

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समर्थक बोले – ‘अनुशासन सर्वोपरि है’

हालांकि कुछ पूर्व सैनिकों और रिटायर्ड अधिकारियों का कहना है कि “सैन्य अनुशासन और एकरूपता” सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। उनका तर्क है कि धार्मिक या व्यक्तिगत छूटों के कारण सैन्य इकाइयों में असमानता और अनुशासनहीनता की स्थिति बन सकती है।

पूर्व मरीन अधिकारी ने कहा –

“आस्था निजी मामला है, लेकिन जब कोई सेना की वर्दी पहनता है, तो उसकी पहली पहचान सैनिक होती है, न कि धार्मिक प्रतिनिधि।”

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रतिक्रिया

भारत में भी इस निर्णय को लेकर बहस शुरू हो गई है। कई सिख संगठनों ने अमेरिकी दूतावास को पत्र लिखकर इसे “अमेरिका की धार्मिक स्वतंत्रता की छवि पर धब्बा” बताया। भारतीय सिख समुदाय के नेताओं ने कहा कि यह फैसला गुरु के आदेश ‘केश रखो’ का अपमान है।

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निष्कर्ष – धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सैन्य अनुशासन

अमेरिकी सेना का यह फैसला दो अहम सिद्धांतों के बीच टकराव दिखाता है — “धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सैन्य अनुशासन।” एक ओर संविधान का पहला संशोधन नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता देता है, वहीं दूसरी ओर सेना का अनुशासन समानता और एकरूपता पर टिका है।

आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस नीति पर कानूनी चुनौती दी जाती है या पेंटागन अपने फैसले में कुछ संशोधन करता है। फिलहाल इतना तय है कि यह कदम अमेरिका में विविधता और समावेशिता की दिशा में एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

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Source: ABP

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