"जातिवाद पर CM योगी का बड़ा प्रहार "
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों पर बैन लगा दिया है। अब यूपी में जाति के नाम पर सभाएं नहीं होंगी। जानें, किन दलों पर पड़ेगा असर और 2027 चुनावी समीकरण कैसे बदलेंगे।

CM Yogi
delhi
3:26 PM, Sep 22, 2025
O News हिंदी Desk
योगी सरकार का ऐतिहासिक फैसला: यूपी में जाति के नाम पर रैलियों पर लगा बैन।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों पर सख्त प्रतिबंध लगा दिया है। यह आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देशों के बाद लागू किया गया है। सरकार का कहना है कि जातीय आधार पर राजनीति करना न केवल सामाजिक सौहार्द बिगाड़ता है बल्कि राष्ट्रीय एकता और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए भी खतरा है।
हाई कोर्ट का आदेश और सरकार की कार्रवाई
16 सितंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा था कि वह जाति-आधारित प्रचार और रैलियों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि राजनीतिक लाभ के लिए जाति का इस्तेमाल समाज में नफरत और टकराव को बढ़ावा देता है। इसके बाद कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने रविवार देर रात 10 सूत्रीय आदेश जारी किया, जिसमें इस प्रतिबंध को लागू करने के लिए सभी जिलों के अधिकारियों और पुलिस प्रमुखों को निर्देश दिए गए।
आदेश के मुताबिक:
- राजनीतिक उद्देश्यों के लिए कोई भी जाति-आधारित रैली अब पूरी तरह बैन होगी।
- एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो और अन्य कानूनी दस्तावेजों से जाति का उल्लेख हटाकर माता-पिता के नाम लिखे जाएंगे।
- थानों, वाहनों और सरकारी बोर्ड्स से जातीय संकेत और नारे हटाए जाएंगे।
- सोशल मीडिया पर जाति-आधारित प्रचार, नारेबाजी और भड़काऊ पोस्ट पर सख्त निगरानी रखी जाएगी।
- SC-ST एक्ट जैसे मामलों में छूट बनी रहेगी।
किन राजनीतिक दलों पर पड़ेगा असर?
यूपी की राजनीति लंबे समय से जातीय समीकरणों पर आधारित रही है। निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP), अपना दल और कुछ हद तक समाजवादी पार्टी जैसे दल जातीय पहचान के सहारे जनसमर्थन जुटाते रहे हैं। इस प्रतिबंध से इन दलों की रणनीति पर सीधा असर पड़ सकता है, खासकर 2027 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र।
पिछले कई चुनावों में देखा गया कि जातीय रैलियां बड़े पैमाने पर भीड़ जुटाने और वोटरों को लुभाने का अहम जरिया रही हैं। लेकिन अब इस तरह के कार्यक्रम कानूनी रूप से अपराध माने जाएंगे।
अखिलेश यादव का सवाल
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार को असल मुद्दों से ध्यान भटकाने के बजाय बेरोजगारी, किसानों की समस्या और महंगाई जैसे विषयों पर काम करना चाहिए। अखिलेश ने आरोप लगाया कि भाजपा खुद भी जातीय ध्रुवीकरण करती रही है और अब विरोधी दलों को रोकने के लिए ऐसे आदेश जारी किए जा रहे हैं।
…और 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा?
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) September 22, 2025
और वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिन्हों के माध्यम से जाति-प्रदर्शन से उपजे जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए क्या किया जाएगा?
और किसी के मिलने पर नाम से पहले ‘जाति’ पूछने की जातिगत भेदभाव की मानसिकता को…
जातीय राजनीति की जड़ें और यूपी का इतिहास
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उत्तर प्रदेश में जातीय राजनीति की जड़ें काफी गहरी हैं। मंडल आयोग की सिफारिशों के बाद 1990 के दशक में पिछड़े वर्ग और दलितों की राजनीति को नई ताकत मिली। इसके बाद से हर चुनाव में जाति समीकरणों का बड़ा महत्व रहा है।
यूपी में यादव, जाटव, निषाद, राजभर, कुर्मी जैसी जातियों पर आधारित वोट बैंक पार्टियों की चुनावी रणनीति की रीढ़ माने जाते रहे हैं। लेकिन जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगने के बाद इन दलों को अब नए विकल्प तलाशने होंगे।
क्या बदलेगा चुनावी परिदृश्य?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला यूपी की राजनीति का चेहरा बदल सकता है। अब दलों को जाति की बजाय विकास, रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर जनता से जुड़ना होगा। हालांकि कुछ राजनीतिक दल इस आदेश को अपनी गतिविधियों पर अंकुश मानकर कोर्ट में चुनौती भी दे सकते हैं।
संभावित असर:
- जाति-आधारित दलों की रणनीति कमजोर होगी।
- राष्ट्रीय पार्टियां विकास एजेंडा पर ज्यादा फोकस कर सकती हैं।
- सोशल मीडिया पर जातिगत नारेबाजी घटेगी।
- पुलिस और प्रशासन पर निगरानी की जिम्मेदारी बढ़ेगी।
कोर्ट का नजरिया
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि जाति का उल्लेख पुलिस स्टेशनों के नोटिस बोर्ड पर नहीं होना चाहिए। साथ ही केंद्रीय मोटर वाहन नियमों (CMVR) में बदलाव कर वाहनों पर जाति-सूचक चिह्न और नारों पर भी पाबंदी लगाने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने IT नियमों 2021 के तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भी निर्देशित किया है कि वे जाति-प्रशंसा और घृणा फैलाने वाली सामग्री पर कार्रवाई करें।
जनता का नजरिया
इस फैसले को लेकर आम जनता की राय भी बंटी हुई है। कई लोग इसे समाज में सद्भाव बनाए रखने की दिशा में ऐतिहासिक कदम बता रहे हैं, वहीं कुछ का मानना है कि जाति से जुड़ी समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर देना समाधान नहीं है।
निष्कर्ष
योगी सरकार का यह फैसला जातीय राजनीति पर सीधा प्रहार है। आने वाले दिनों में इसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव साफ दिखाई देंगे। जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध के बाद यूपी की राजनीति का केंद्र अब वास्तविक विकास मुद्दों पर शिफ्ट हो सकता है। लेकिन यह भी सच है कि जातीय पहचान यूपी की सामाजिक संरचना का अहम हिस्सा रही है। देखना होगा कि राजनीतिक दल इस नई चुनौती का सामना कैसे करते हैं।
Source: Tv9