जापान का बड़ा फैसला: मुसलमानों को दफनाने की जमीन देने से इनकार, बढ़ी चिंता
जापान ने मुस्लिम समुदाय को नए कब्रिस्तान की जमीन देने से इनकार कर दिया है। जमीन की कमी का हवाला देते हुए सरकार ने शवों को मूल देश भेजने की बात कही।

जापान का बड़ा फैसला
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11:05 AM, Dec 2, 2025
O News हिंदी Desk
जापान ने मुस्लिम दफन प्रक्रिया पर लिया सख्त फैसला: कब्रिस्तान की ज़मीन देने से साफ इनकार, मुस्लिम समुदाय में बढ़ी चिंता
Japan Refuses Burial Land For Muslims: जापान से एक ऐसा निर्णय सामने आया है जिसने वहां रह रहे मुस्लिम समुदाय को गहरी चिंता में डाल दिया है। जापान सरकार ने साफ कर दिया है कि देश में नए इस्लामिक कब्रिस्तानों के लिए अब कोई अतिरिक्त भूमि उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। सरकार का स्पष्ट तर्क है—“जमीन की भारी कमी है, इसलिए मुस्लिम शव अपने मूल देशों में भेजकर ही दफनाए जाएं।”
यह फैसला केवल धार्मिक पहलू से जुड़ा मुद्दा नहीं है, बल्कि जापान की भौगोलिक संरचना, जनसंख्या घनत्व, सांस्कृतिक परंपराओं और भूमि उपयोग नीतियों से सीधे जुड़ा है। इस नीति परिवर्तन के बाद जापान में बसे हजारों मुसलमानों के सामने कई गंभीर चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं।
जमीन की कमी बना सबसे बड़ा कारण: जापान क्यों नहीं दे पा रहा दफनाने की जगह?
जापान दुनिया के उन देशों में से एक है जहाँ जमीन बेहद सीमित है। पहाड़ों, जंगलों और समुद्री तटों से घिरे इस द्वीपीय राष्ट्र में 85% भूभाग निर्माण के लिए उपयुक्त नहीं है। ऐसे में किसी भी नए सामुदायिक कब्रिस्तान के लिए भूमि आवंटित करना सरकार के लिए बेहद मुश्किल हो गया है।
- जापान की आबादी: लगभग 12.5 करोड़ से अधिक
- रहने योग्य भूमि: केवल 15%
- धार्मिक रीति: 99% अंतिम संस्कार दाह-संस्कार (Cremation)
जबकि मुस्लिम समुदाय में शव को मिट्टी में दफनाने की धार्मिक बाध्यता होती है। भूमि की कमी और बढ़ती आबादी के कारण जापान सरकार का मानना है कि परंपरागत दफनाने की जगह देना अब संभव नहीं है।
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जापान में मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ रही है
जापान हमेशा से गैर-मुस्लिम बहुल देश रहा है, लेकिन पिछले 30 वर्षों में मुस्लिमों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
- 1990 में मुस्लिम आबादी: लगभग 30,000
- 2024 तक अनुमानित संख्या: लगभग 2 लाख
- आने वाले वर्षों में और वृद्धि की संभावना
इसी बढ़ती आबादी के साथ कब्रिस्तानों की डिमांड भी बढ़ी है, जिससे सरकार पर दबाव बन रहा था। कई शहरों में पहले से ही सीमित कब्रिस्तान भर चुके हैं।
जापान की धार्मिक परंपरा: क्यों यहाँ दफनाने की संस्कृति नहीं?
जापान में शिंटो और बौद्ध धर्म का गहरा प्रभाव है। दोनों धर्म दाह-संस्कार को ही अंतिम संस्कार का सर्वोत्तम तरीका मानते हैं।
जापान की धार्मिक जनसंख्या:
- शिंतो धर्म: 48.6%
- बौद्ध धर्म: 46.4%
- ईसाई: 1.1%
- अन्य धर्म: 4%
यहाँ दफनाए गए शरीर के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता होती है, जबकि दाह-संस्कार में स्थान की जरूरत बेहद कम होती है। इसलिए, जापान में पारंपरिक तौर पर दफनाने की प्रथा लगभग न के बराबर है।
सरकार का स्पष्टीकरण: “मुद्दा धर्म का नहीं, जमीन का है”
जापानी अधिकारियों ने साफ किया कि यह फैसला किसी धार्मिक मतभेद की वजह से नहीं लिया गया है। सरकार के अनुसार—
- देश में जमीन की कमी लगातार बढ़ रही है
- पहले से बने कब्रिस्तान भर चुके हैं
- नए सिविल सुविधाओं के लिए भी भूमि की जरूरत है
- दफनाने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने से भूमि संकट और बढ़ेगा
सरकार का यह बयान मुस्लिम समुदाय के लिए भले ही सांत्वना जैसा लगे, लेकिन इससे उनकी समस्या हल होती नहीं दिख रही।
मुस्लिम समुदाय में नाराजगी और बेचैनी
जापान में रह रहे मुसलमानों के लिए यह फैसला बेहद चिंताजनक है। उनकी प्रमुख आपत्तियाँ हैं:
- इस्लाम में शव को दफनाना अनिवार्य है
- शव को मूल देश भेजने का खर्च बहुत अधिक होता है
- समय पर शव को भेजना मुश्किल होता है
- कई मुस्लिम परिवार दशकों से जापान में बसे हैं, ऐसे में "शव देश भेजना" व्यावहारिक नहीं
- कुछ देशों में वापसी प्रक्रिया भी जटिल होती है
कई मुस्लिम संगठनों ने जापान सरकार से फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की है और कहा है कि कम से कम छोटे समुदायों के लिए नियंत्रित भूमि आवंटन किया जाना चाहिए।
शव को मूल देश भेजने की प्रक्रिया क्यों कठिन है?
जापान से किसी मुस्लिम शव को उसके मूल देश भेजने की प्रक्रिया कई चरणों से गुजरती है:
- एम्बामिंग (शव संरक्षण)
- एयर कार्गो शुल्क
- कागज़ी कानूनी प्रक्रिया
- संबंधित देश के दूतावास से अनुमति
- जापान के स्वास्थ्य विभाग की मंजूरी
अक्सर पूरा खर्च 2 लाख से 5 लाख रुपये तक हो जाता है।
कई मुस्लिम परिवारों का तर्क—“हम यहां जन्मे-बढ़े, तो दफन क्यों नहीं?”
जापान में अब एक बड़ा हिस्सा ऐसे मुसलमानों का है जो वहीं जन्मे और बड़े हुए हैं। वे जापानी भाषा, संस्कृति और समाज के साथ घुलमिल चुके हैं। उनका सवाल है:
“जब हम जापान की अर्थव्यवस्था, समाज और उद्योगों में योगदान देते हैं, तो क्या हमें मरने के बाद भी केवल इसलिए बाहर भेज दिया जाएगा क्योंकि हम दफनाने की प्रक्रिया को फॉलो करते हैं?”
यह सवाल जापान के बहुसांस्कृतिक समाज के भविष्य को भी चुनौती देता है।
क्या जापान वैकल्पिक समाधान खोज सकता है?
कुछ विशेषज्ञों ने सरकार को सुझाव दिए हैं:
- वर्टिकल कब्रिस्तान (ऊर्ध्वाधर रूप में बहुमंजिला कब्रिस्तान)
- साझा कब्रिस्तानों में मुस्लिम सेक्शन
- ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे इस्लामिक कब्रिस्तान की अनुमति
- ग्रीन बरीअल तकनीक
- कम जगह वाले इको-फ्रेंडली दफन मॉडल
लेकिन फिलहाल जापान सरकार इन प्रस्तावों पर विचार कर रही है या नहीं, इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है।
जापान का यह फैसला अंतरराष्ट्रीय बहस को जन्म दे सकता है
जैसे-जैसे दुनिया वैश्वीकरण की तरफ बढ़ रही है, विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों को स्वीकार करने के सवाल अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। जापान का यह कदम उन देशों के लिए मिसाल भी बन सकता है जहाँ भूमि की कमी है और अल्पसंख्यक समुदायों की मांग बढ़ रही है।
दूसरी ओर, इसे धार्मिक संवेदनशीलता की अनदेखी के रूप में भी देखा जा सकता है।
निष्कर्ष: जापान का सख्त फैसला एक नई बहस की शुरुआत
जापान का यह निर्णय केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़ा करता है—आधुनिक समाज में धार्मिक विविधता और भूमि प्रबंधन के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए?
मुस्लिम समुदाय के लिए यह फैसला निश्चित रूप से बड़ा झटका है, लेकिन जापान की ज्योग्राफिकल और सांस्कृतिक सीमाओं को देखते हुए सरकार की दलीलें भी पूरी तरह अनदेखी नहीं की जा सकतीं।
आने वाले समय में देखना होगा कि जापान इस मुद्दे पर कोई लचीला विकल्प देता है या कठोर नीति जारी रहती है।
Source: NBT


