DUSU Election Results 2025: ABVP का दबदबा, NSUI ने EVM धांधली का लगाया आरोप – कांग्रेस का पुराना बहाना फिर सामने आया
DUSU Student Union Elections 2025 में ABVP ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि NSUI को केवल उपाध्यक्ष पद मिला। हार के बाद NSUI ने EVM धांधली और प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लगाया। जानें क्यों कांग्रेस हर हार के बाद ऐसे बहाने खोजती है।

ABVP का दबदबा, NSUI ने EVM धांधली का लगाया आरोप (Pics-AI)
delhi
8:38 PM, Sep 19, 2025
O News हिंदी Desk
ABVP ने DUSU चुनाव में मारी बाजी, NSUI ने EVM धांधली का लगाया आरोप – क्या कांग्रेस को हार के बाद ‘बचाव का बहाना’ मिल ही जाता है?
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (DUSU) चुनाव 2025 के नतीजे शुक्रवार को घोषित हुए और एक बार फिर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) का दबदबा देखने को मिला। ABVP ने अध्यक्ष, सचिव और संयुक्त सचिव जैसे तीन महत्वपूर्ण पदों पर जीत दर्ज की, जबकि भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (NSUI) को सिर्फ उपाध्यक्ष पद पर संतोष करना पड़ा। लेकिन, हर बार की तरह इस बार भी हारने वाले पक्ष की ओर से आरोपों की झड़ी लग गई। NSUI ने ABVP पर EVM में गड़बड़ी और धांधली का गंभीर आरोप लगाया। अब सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस की छात्र इकाई ने अपने प्रदर्शन की समीक्षा करने की बजाय हार का ठीकरा मशीनों और बाहरी ताकतों पर फोड़ना आसान समझ लिया है?
ABVP का दबदबा, NSUI का सीमित सुकून
इस बार DUSU चुनाव में ABVP ने शानदार जीत दर्ज की।
- अध्यक्ष – आर्यन मान (ABVP)
- सचिव – कुणाल चौधरी (ABVP)
- संयुक्त सचिव – दीपिका झा (ABVP)
- उपाध्यक्ष – राहुल झांसला (NSUI)
यानी चार में से तीन सीटों पर ABVP ने कब्जा जमाया और NSUI के खाते में केवल उपाध्यक्ष का पद आया। चुनावी परिणाम यह दिखाते हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में ABVP की पकड़ और जनाधार लगातार मजबूत हो रहा है।
NSUI के आरोप: हार का कारण या बचाव का बहाना?
NSUI के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरुण चौधरी ने परिणामों के तुरंत बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उनका आरोप था कि किरोड़ीमल, हिंदू और हंसराज कॉलेज में EVM पर पहले से ही स्याही लगाई गई थी, ताकि NSUI के वोट दब न सकें।
उन्होंने तीखे अंदाज में कहा,
“यह चुनाव NSUI बनाम ABVP नहीं था, बल्कि NSUI बनाम डीयू प्रशासन, दिल्ली पुलिस, दिल्ली सरकार, रेखा गुप्ता और केंद्र सरकार था। जैसे बीजेपी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वोट चोरी करती है, वैसे ही यहां भी धांधली की गई।”
लेकिन यहीं पर सवाल उठने लगते हैं।
- अगर EVM में धांधली इतनी ही साफ थी तो चुनाव से पहले NSUI ने इसकी तैयारी क्यों नहीं की?
- हर बार की तरह हार के बाद ही EVM में गड़बड़ी क्यों याद आती है?
- और अगर तीन पदों पर धांधली हुई, तो उपाध्यक्ष का पद NSUI को कैसे मिल गया?
यह वही सवाल हैं जो आम छात्र भी उठा रहे हैं।
कांग्रेस की पुरानी आदत: हार के बाद बहाना
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस और उसकी सहयोगी इकाइयों में हार स्वीकारने का साहस कम होता जा रहा है। लोकसभा चुनावों में हार? – EVM गड़बड़ी! विधानसभा चुनावों में हार? – मीडिया, प्रशासन और केंद्रीय एजेंसियां जिम्मेदार! छात्रसंघ चुनावों में हार? – फिर वही धांधली और RSS के स्लीपर सेल का हवाला!
जाहिर है, हार की जिम्मेदारी अपने संगठन, रणनीति और प्रत्याशी चयन पर डालने से आसान है मशीन या प्रतिद्वंद्वी को दोष देना।
प्रत्याशी चयन पर उठे सवाल
NSUI के अंदर भी यह चर्चा तेज है कि प्रत्याशियों के चयन में गड़बड़ी हुई। वरुण चौधरी ने इसे स्वीकारते हुए कहा कि चार सीटों पर नाम तय करने का निर्णय कई लोगों ने मिलकर लिया। लेकिन उन्होंने साथ ही आरोप लगाया कि कुछ लोग आरएसएस के एजेंडे पर काम करते हुए NSUI और कांग्रेस की छवि खराब कर रहे हैं।
यहां भी वही कांग्रेस वाली दिक्कत दिखी – हार का ठीकरा “स्लीपर सेल” और “भीतरी साजिश” पर फोड़ देना। सवाल यह है कि अगर संगठन के भीतर ही नियंत्रण नहीं है, तो छात्र NSUI पर भरोसा क्यों करेंगे?
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ABVP का ग्राउंड कनेक्शन और संगठन की ताकत
ABVP ने इस चुनाव में अपने संगठन कौशल का पूरा प्रदर्शन किया। कॉलेज कैंपस में छात्रों से सीधा जुड़ाव, मुद्दों पर जोरदार बहस और सोशल मीडिया की जबरदस्त मौजूदगी ने उन्हें फायदा पहुंचाया।
ABVP का दावा है कि उनकी जीत छात्रों के विश्वास का नतीजा है, न कि किसी धांधली का। अध्यक्ष पद पर जीतने वाले आर्यन मान ने कहा:
“यह जीत हमारे कार्यकर्ताओं की मेहनत और छात्रों के भरोसे की जीत है। NSUI आरोप लगाने में समय बर्बाद कर रही है, जबकि हम छात्रों के लिए काम करेंगे।”
छात्रों की राय: आरोपों से ज्यादा मुद्दे अहम
कैंपस में कई छात्रों से बातचीत करने पर यही सामने आया कि उन्हें बार-बार “धांधली” का राग सुनकर अब बोरियत होने लगी है।
- कुछ छात्रों ने कहा कि NSUI हार से सीखने की बजाय बहाना बनाती है।
- वहीं कुछ का मानना है कि छात्र राजनीति में अब सोशल मीडिया और कैंपेनिंग की अहमियत बढ़ गई है, जिसमें ABVP NSUI से कहीं आगे है।
कांग्रेस और NSUI के लिए सबक
DUSU चुनाव कोई छोटा-मोटा मुकाबला नहीं होता। इसे अक्सर राष्ट्रीय राजनीति का “मिनी चुनाव” कहा जाता है, क्योंकि यहां से निकले कई चेहरे बाद में संसद और विधानसभा तक पहुंचे हैं।
NSUI के लिए यह समय आत्मचिंतन का है:
- संगठन की पकड़ कमजोर क्यों हो रही है?
- प्रत्याशी चयन में पारदर्शिता क्यों नहीं है?
- छात्र मुद्दों की बजाय बार-बार आरोप-प्रत्यारोप पर क्यों टिके रहते हैं?
अगर हर हार के बाद “EVM धांधली” और “RSS स्लीपर सेल” का राग ही अलापा जाएगा, तो छात्रों के बीच संगठन की विश्वसनीयता और घटती जाएगी।
व्यंग्यात्मक नजरिया: “कांग्रेस का नया चुनावी घोषणापत्र”
कांग्रेस और NSUI की आदत को देखते हुए सोशल मीडिया पर छात्र मजाक करते हैं कि पार्टी को अब अपने घोषणापत्र में यह जोड़ देना चाहिए:
- “अगर हम हारेंगे तो जिम्मेदार होंगे EVM, प्रशासन और मीडिया।”
- “अगर हम जीतेंगे तो श्रेय हमारी मेहनत और जनता के भरोसे को जाएगा।”
यह व्यंग्य कांग्रेस की उस छवि को उजागर करता है जिसमें हार की जिम्मेदारी कभी अपने कंधों पर नहीं ली जाती।
निष्कर्ष: दिल्ली यूनिवर्सिटी में किसका दबदबा?
DUSU चुनाव 2025 के नतीजों ने साफ कर दिया है कि फिलहाल दिल्ली विश्वविद्यालय की राजनीति में ABVP का दबदबा कायम है। NSUI को एक पद जरूर मिला है, लेकिन बाकी तीन पदों पर ABVP की जीत उनके मजबूत संगठन और छात्रों के बीच बढ़ते भरोसे को दर्शाती है।
जहां तक EVM धांधली और आरोपों की बात है, यह कांग्रेस और उसकी इकाइयों का “पारंपरिक बहाना” बन चुका है। सवाल यह है कि कांग्रेस कब तक अपनी हार का कारण बाहर तलाशती रहेगी और कब संगठन के भीतर झांककर अपनी कमजोरियों को सुधारने की कोशिश करेगी?
Source: Patrika