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Islamophobia in USA & London: मिनी पाकिस्तान कैसे बन रहे मुस्लिम मोहल्ले? | Onews Hindi

अमेरिका के टेक्सस से लेकर लंदन और यूरोप तक मुस्लिम मोहल्लों को अब ‘मिनी पाकिस्तान’ कहा जा रहा है। शरणार्थियों के बढ़ते प्रभाव से स्थानीय लोग अपनी संस्कृति खोते महसूस कर रहे हैं। जानिए पूरी रिपोर्ट।

Islamophobia in USA & London: मिनी पाकिस्तान कैसे बन रहे मुस्लिम मोहल्ले? | Onews Hindi

Islamophobia in USA & London

delhi/uk

7:50 PM, Sep 16, 2025

O News हिंदी Desk

Islamophobia: अमेरिका-लंदन में क्यों बन रहे हैं ‘मिनी पाकिस्तान’? शरणार्थियों से कट्टरपंथ तक की पूरी कहानी

परिचय

पश्चिमी देशों में एक नई बहस चल रही है—क्या शरणार्थियों और प्रवासी मुसलमानों की बढ़ती आबादी स्थानीय संस्कृति को निगल रही है? अमेरिका से लेकर लंदन और यूरोप तक ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जिनकी वजह से लोग कहने लगे हैं कि यहां अब “मिनी पाकिस्तान” बस चुके हैं। कभी शरण लेने आए प्रवासी आज अपने धार्मिक कानून और परंपराएं थोपने लगे हैं। इससे लोकल लोग अपने ही मुल्क में अजनबी महसूस करने लगे हैं।

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अमेरिका के टेक्सस से उठी बड़ी बहस

टेक्सस के ह्यूस्टन शहर में मौलवी एफ. कासिम इब्न अली खान का विवाद चर्चा में है। उन्होंने मस्जिद से लाउडस्पीकर पर दुकानदारों को धमकाते हुए कहा कि:

  1. कोई पोर्क (सुअर का मांस) नहीं बेचेगा
  2. कोई शराब की दुकान नहीं चलाएगा
  3. कोई लॉटरी टिकट नहीं बेचेगा

यानी अमेरिका जैसे देश में शरिया आधारित पाबंदियां लागू करने की कोशिश की गई।

गवर्नर का सख्त संदेश

टेक्सस के गवर्नर ग्रेग एबट ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा:

  1. “2017 में ही कानून पास कर दिया गया था कि शरिया या कोई विदेशी धार्मिक कानून यहां नहीं चलेगा।”
  2. “अगर कोई दबाव बनाए या धमकाए तो तुरंत पुलिस को सूचना दें।”

यानी अमेरिका साफ कर चुका है कि लोकल कल्चर और संविधान सर्वोपरि है।

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लंदन का सड़कों पर फूटा गुस्सा

इंग्लैंड की राजधानी लंदन में “Unite the Kingdom” नाम से बड़ा मार्च निकला। बताया गया कि 1 से 1.5 लाख लोग इस प्रदर्शन में शामिल हुए। नारा था: “हमें हमारा ब्रिटेन वापस चाहिए।”

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Islamophobia in USA & London

क्यों नाराज हैं स्थानीय लोग?

  1. लंदन की कई सड़कें अब पाकिस्तान या बांग्लादेश जैसी दिखने लगी हैं।
  2. ग्रीन स्ट्रीट, ब्रिक लेन जैसे इलाकों में उर्दू और बांग्ला साइनबोर्ड आम हैं।
  3. ईद पर हजारों लोग सड़कों पर नमाज पढ़ते हैं, स्थानीय त्योहार पीछे छूट रहे हैं।
  4. पब बंद हो रहे हैं और मस्जिदें बढ़ रही हैं।

लोकल ब्रिटिश लोग कहने लगे हैं—“अपने ही मुल्क में टूरिस्ट जैसा महसूस हो रहा है।”

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बेल्जियम और फ्रांस: चर्च खाली, मस्जिदें भरी

ब्रसेल्स (बेल्जियम) का मोलनबीक इलाका अब “जिहादी राजधानी” कहा जाने लगा है।

  1. 40% आबादी उत्तरी अफ्रीका से आई है।
  2. पुलिस यहां अकेले नहीं जाती क्योंकि पत्थरबाजी होती है।
  3. पुराने स्थानीय लोग इलाके से पलायन कर चुके हैं।

फ्रांस में भी अल्जीरिया और मोरक्को से आए प्रवासी बड़े पैमाने पर बस गए हैं। अरबी भाषा गलियों में आम हो गई है। नकाब बैन पर हिंसक दंगे हो चुके हैं।

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स्वीडन का माल्मो और “डेंजर ज़ोन”

स्वीडन का माल्मो शहर 2015 में चर्चा में आया जब 10 लाख शरणार्थी यहां पहुंचे।

  1. इनमें अधिकतर सीरिया, इराक और सोमालिया से आए थे।
  2. माल्मो का रोसेंगार्ड इलाका अब 85% प्रवासी बाहुल्य है।
  3. पुलिस और फायर ब्रिगेड इस इलाके को “खतरनाक इलाका” घोषित कर चुके हैं।
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क्यों बढ़ रहा है Islamophobia?

पश्चिम में बढ़ती प्रवासी आबादी और कट्टरपंथी संगठनों की गतिविधियां लोगों को डराती हैं।

  1. हिज्ब उत-तहरीर जैसे संगठन जो अरब देशों में बैन हैं, यूरोप में फल-फूल रहे हैं।
  2. मुस्लिम ब्रदरहुड यूरोप में चैरिटी और मस्जिदों के जरिए पकड़ बना रहा है।
  3. अमेरिका में कुछ मस्जिदों पर 13 मिलियन डॉलर फंडिंग को लेकर सवाल उठे हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह शरणार्थी उन्हीं देशों से भागकर आए जहां कट्टरपंथ था और अब यूरोप में वही सोच थोप रहे हैं।

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लिबरल नीतियां बनीं उलटा हथियार

यूरोप और अमेरिका की लिबरल नीतियों ने शरणार्थियों को सुरक्षा दी। लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ी, हालात बदलते गए—

  1. पहले शरण मिली, अब लोकल संस्कृति पर दबाव डाला जाने लगा।
  2. जिन सिद्धांतों के सहारे उन्हें शरण मिली, उन्हीं को वे मानने से इनकार कर रहे हैं।
  3. स्थानीय लोग कह रहे हैं कि उनकी पहचान, संस्कृति और भाषा खतरे में है।
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भारतीयों के लिए खतरे की घंटी

इस्लामोफोबिया की इस लहर का असर भारतीय प्रवासियों पर भी पड़ सकता है। क्योंकि—

  1. दंगाई भीड़ पासपोर्ट देखकर हमला नहीं करती।
  2. भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी शारीरिक रूप से लगभग एक जैसे दिखते हैं।
  3. आईटी प्रोफेशनल, डॉक्टर या इंजीनियर भी इस गुस्से की चपेट में आ सकते हैं।

यानी यह सिर्फ मुस्लिम बनाम ईसाई का मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे एशियाई समुदाय के लिए खतरा बन सकता है।

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नतीजा: इस्लामोफोबिया की आग

आज अमेरिका, लंदन और यूरोप में हालात यह हैं कि—

  1. एक तरफ कट्टरपंथी संगठन खुलकर काम कर रहे हैं।
  2. दूसरी तरफ लोकल लोग गुस्से में “विदेशियों को निकालो” जैसे नारे लगा रहे हैं।

इस टकराव ने इस्लामोफोबिया (मुस्लिम विरोधी भावना) को हवा दी है। अगर यही सिलसिला जारी रहा तो यूरोप और अमेरिका में बड़े सामाजिक टकराव देखने को मिल सकते हैं।

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निष्कर्ष

अमेरिका के टेक्सस से लेकर लंदन, बेल्जियम, फ्रांस और स्वीडन तक हालात एक जैसे हैं।

  1. स्थानीय संस्कृति दबाव में है
  2. शरणार्थी समुदाय अपनी शर्तें थोपने लगे हैं
  3. और लोकल लोग गुस्से में हैं

यह आग सिर्फ यूरोप तक सीमित नहीं रहेगी, इसका असर भारतीयों और एशियाई मूल के प्रवासियों पर भी पड़ सकता है। यानी यह सिर्फ इस्लामोफोबिया की कहानी नहीं, बल्कि ग्लोबल कल्चर क्लैश की चेतावनी है।

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