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" KANTARA- 2 " की धमाकेदार ओपनिंग.! हर हर महादेव से गूंज उठा सिनेमा हॉल.!

Kantara Chapter 1 Review in Hindi: ऋषभ शेट्टी की कांतारा चैप्टर 1 सिर्फ़ फिल्म नहीं, आस्था और संस्कृति की आत्मा है। पढ़ें पूरी समीक्षा — कहानी, अभिनय, क्लाइमैक्स और आध्यात्मिक दर्शन के साथ।

" KANTARA- 2 " की धमाकेदार ओपनिंग.! हर हर महादेव से गूंज उठा सिनेमा हॉल.!

Kantara Chapter 1 Review in Hindi

delhi

4:04 PM, Oct 6, 2025

O News हिंदी Desk

कांतारा चैप्टर 1 रिव्यू: ऋषभ शेट्टी बने ‘दैव’ – एक ऐसी दुनिया जहाँ जंगल, संस्कृति और आस्था एक हो जाती है | Kantara Chapter 1 Review in Hindi

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“कांतारा: चैप्टर 1” – सिर्फ़ फिल्म नहीं, आस्था और जंगलों की आत्मा का जीवंत दर्शन

दक्षिण भारत की मिट्टी से निकली एक फिल्म ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भारतीय सिनेमा अब सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि दर्शन बन चुका है। ऋषभ शेट्टी की ‘कांतारा चैप्टर 1 (Kantara Chapter 1)’ दर्शकों को एक ऐसी रहस्यमयी दुनिया में ले जाती है जहाँ जंगलों की हर सरसराहट में सनातन धर्म की ध्वनि गूंजती है।

फ़िल्म की शुरुआत से लेकर क्लाइमेक्स तक दर्शक एक भावनात्मक, दार्शनिक और आध्यात्मिक यात्रा पर निकल पड़ते हैं — जहाँ हँसी, आँसू, रहस्य और रोमांच सब एक साथ बहते हैं।

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ऋषभ शेट्टी: निर्देशक, लेखक और ‘दैव’ – तीनों रूपों में अद्भुत

फिल्म के केंद्र में हैं ऋषभ शेट्टी, जो न केवल निर्देशक और लेखक हैं, बल्कि ‘दैव’ के रूप में अभिनय करते हुए अपनी आत्मा को किरदार में ढाल देते हैं। यह वही ऋषभ हैं जिन्होंने पहली ‘कांतारा’ में पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था।

इस बार उनकी महत्वाकांक्षाएँ और भी बड़ी हैं — दृश्य दर दृश्य फिल्म का स्तर ऊपर उठता जाता है। क्लाइमेक्स आते-आते यह फिल्म एक पुरानी लेकिन दिव्य शराब जैसी लगने लगती है — परिपक्व, गहरी और नशे में डूबो देने वाली।

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कहानी: अच्छाई बनाम बुराई की पुरानी कथा, लेकिन नए रहस्यों के साथ

कहानी की बुनियाद अब भी वही है — अच्छाई बनाम बुराई, लेकिन इस बार इसमें छल, राजनीति, नरसंहार और विश्वासघात की परतें जुड़ चुकी हैं। इस बार जंगल के साथ-साथ एक राजपरिवार की कहानी भी शामिल है।

पहले हाफ में ऋषभ ने दोनों दुनियाओं — जंगल और राजमहल — को स्थापित करने के लिए समय लिया है। कई बार यह धीमा लगता है, लेकिन सेकंड हाफ में कहानी अपनी पूरी गति पकड़ लेती है। जहाँ Kantara 1 खत्म हुई थी, वहीं से यह फिल्म शुरू होती है, और फिर आपको एक ऐसी आध्यात्मिक लड़ाई में डाल देती है जो दृश्य से ज्यादा अंतर्मन में घटती है।

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अभिनय: हर किरदार सशक्त, लेकिन ऋषभ के आगे सब फीके

फिल्म में हर किरदार को पूरा स्पेस दिया गया है। रुक्मिणी वसंत पहले तो साधारण लगती हैं, लेकिन एक्सटेंडेड क्लाइमैक्स में उनका चरित्र गहराई पकड़ता है। जयराम, जो मलयालम सिनेमा के दिग्गज हैं, बेहद नियंत्रित और रहस्यमयी भूमिका में हैं। गुलशन देवैया को शानदार स्क्रीन टाइम मिला है और उन्होंने इसे पूरी तरह भुनाया है।

कॉमिक टाइमिंग की जिम्मेदारी नवीन डी. पडिल और प्रकाश थुमिनाद ने उठाई है। हालांकि, कुछ दर्शकों को युद्ध के बीच कॉमेडी असामान्य लग सकती है, पर यह भी फिल्म के टोन का हिस्सा है — जीवन और मृत्यु के बीच का संतुलन।

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निर्देशन और तकनीकी पक्ष: ग्रैंडनेस और गहराई का दुर्लभ संगम

‘कांतारा चैप्टर 1’ तकनीकी रूप से भारतीय सिनेमा की उपलब्धि कही जा सकती है। फिल्म के सेट्स, कॉस्ट्यूम और बैकड्रॉप दर्शक को नवमी सदी के कदम्ब राजाओं के युग में ले जाते हैं।

जंगल के दृश्य इतने असली लगते हैं कि लगता है मानो कैमरा नहीं, प्रकृति खुद आपको कहानी सुना रही है। VFX औसत से बेहतर है, विशेषकर नंदी और बाघ के युद्ध दृश्यों में।

हाँ, हिंदी डब संस्करण में दो कमजोरियाँ हैं —

1️⃣ भाषा का टोन आधुनिक लगता है, जो नौवीं सदी के परिवेश से मेल नहीं खाता।

2️⃣ पार्श्वसंगीत (BGM) कई बार इतना ऊँचा है कि संवाद दब जाते हैं।

फिर भी, ‘वराह रूपम’ के लौटने पर थिएटर तालियों से गूंज उठता है।

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धर्म, संस्कृति और वनवासी समाज – एक अद्भुत सिनेमाई चित्रण

यह फिल्म सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि एक विचारधारा की पुनःस्थापना है। ऋषभ शेट्टी ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि — “जनजातीय या वनवासी समाज, सनातन का ही विस्तार है।”

‘कांतारा चैप्टर 1’ वामपंथी नैरेटिव को चुनौती देती है, जो बार-बार वनवासी समाज को हिंदू संस्कृति से अलग बताने की कोशिश करता है। फिल्म में दिखाया गया हर अनुष्ठान, हर आस्था, हर पर्व — भारत के ‘असली भारत’ की याद दिलाता है, जहाँ ऋषि-मुनि, वन और वनवासी – तीनों एक ही जीवनधारा का हिस्सा थे।

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क्लाइमैक्स और दैव का दर्शन

फिल्म का क्लाइमेक्स ऐसा है जिसे शब्दों में बांधना कठिन है। ‘दैव’ का रूप धारण करते हुए ऋषभ शेट्टी सिर्फ अभिनय नहीं करते — वे उस दिव्यता को जी लेते हैं। उनका शरीर, चेहरा, आँखें — सब किसी अदृश्य शक्ति से भर उठते हैं। यही वो क्षण है जहाँ दर्शक स्वतः ही बोल उठते हैं — “हर हर महादेव!”

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सिनेमैटोग्राफी और विज़ुअल अनुभव

रात के दृश्य विशेष रूप से प्रभावशाली हैं, हालांकि लो-क्वालिटी स्क्रीन पर देखने वाले दर्शकों को कुछ कमी महसूस हो सकती है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी दर्शक को बार-बार यह एहसास दिलाती है कि प्रकृति ही असली मंदिर है।

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निष्कर्ष: कांतारा चैप्टर 1 – दर्शन, भाव और शक्ति का संगम

‘कांतारा चैप्टर 1’ ग्रैंड है, लेकिन इसमें आत्मा का कोई समझौता नहीं किया गया है। यह फिल्म भारतीय सिनेमा में “देवत्व और जनजातीय संस्कृति” की सबसे प्रामाणिक प्रस्तुति है। जहाँ एक ओर इसमें बाहुबली जैसी भव्यता है, वहीं दूसरी ओर यह अपनी जड़ों से गहराई से जुड़ी हुई है।

फिल्म खत्म होते-होते दर्शक सिर झुकाकर बाहर निकलते हैं — क्योंकि यह फिल्म देखने के लिए नहीं, अनुभव करने के लिए बनी है।

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एक लाइन में Onews Hindi की समीक्षा:

“हॉल से निकलते वक्त जुबान पर बस एक ही शब्द रहता है – हर हर महादेव!”

Source: O News Hindi

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