केरल हाई कोर्ट: भीख माँगने वाले को तीसरे निकाह की इजाजत नहीं
केरल हाई कोर्ट ने कहा, मुस्लिम पर्सनल लॉ में पॉलिगामी तभी मान्य जब पति सभी बीवियों का खर्च उठा सके। भीख से गुज़ारा करने वाला तीसरा निकाह नहीं कर सकता।

मस्जिद के बाहर भीख माँगता है, करना चाहता है तीसरा निकाह
delhi
5:13 PM, Sep 20, 2025
O News हिंदी Desk
मस्जिद के बाहर भीख माँगता है, करना चाहता है तीसरा निकाह – केरल हाई कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
Onews Hindi | 20 सितंबर 2025
केरल हाई कोर्ट ने एक बेहद दिलचस्प और सामाजिक दृष्टि से अहम मामले में टिप्पणी करते हुए साफ कर दिया है कि इस्लामिक पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) में पॉलिगामी यानी एक से अधिक निकाह की अनुमति जरूर है, लेकिन यह अनुमति जिम्मेदारी और न्याय की शर्तों पर टिकी हुई है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति अपनी बीवियों का पेट नहीं पाल सकता और उनका ठीक से ख्याल नहीं रख सकता, तो उसे तीसरी शादी करने का कोई हक नहीं है।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला उस वक्त चर्चा में आया जब केरल की एक महिला ने फैमिली कोर्ट में गुज़ारा भत्ता (Maintenance) की अर्जी दायर की। उसका आरोप था कि उसका शौहर भीख माँगकर रोज़ी कमाता है और शुक्रवार को मस्जिदों के बाहर बैठकर तकरीबन 25,000 रुपये महीने कमाता है। महिला का कहना था कि पति उसे तलाक की धमकी दे रहा है और तीसरा निकाह करने की तैयारी कर रहा है।
फैमिली कोर्ट ने पहले महिला की याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि एक भिखारी से गुज़ारा भत्ता की रकम वसूलना संभव नहीं है। लेकिन जब मामला हाई कोर्ट पहुँचा, तो वहाँ से बिल्कुल अलग और कड़ा रुख सामने आया।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
केरल हाई कोर्ट के जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि “कुरान में पॉलिगामी की इजाजत दी गई है, लेकिन यह अनुमति तभी है जब पति अपनी सभी पत्नियों के साथ न्याय कर सके और उनका खर्च उठा सके।"
उन्होंने आगे कहा कि जो व्यक्ति अपनी पहली या दूसरी बीवी का भी ठीक से भरण-पोषण नहीं कर पा रहा है, उसे तीसरी शादी करने का कोई अधिकार नहीं है। अदालत ने साथ ही राज्य के सामाजिक कल्याण विभाग (Social Welfare Department) को निर्देश दिया कि उस व्यक्ति की काउंसलिंग की जाए ताकि वह तीसरा निकाह करने से पहले अपनी ज़िम्मेदारियों को समझे।
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कुरान और बहुविवाह की शर्तें
कोर्ट ने अपने फैसले में कुरान की आयतों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि इस्लाम में बहुविवाह (Polygamy in Islam) केवल न्याय और जिम्मेदारी के आधार पर ही स्वीकार्य है। अगर कोई पुरुष यह शर्तें पूरी नहीं कर सकता, तो उसे दोबारा निकाह करने का हक नहीं है।
इस फैसले ने साफ कर दिया कि धार्मिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।
क्यों है यह फैसला अहम?
- यह आदेश उन मामलों के लिए नज़ीर (Judicial Precedent) बन सकता है जहाँ पति बहुविवाह का दुरुपयोग कर आर्थिक और सामाजिक अन्याय करता है।
- कोर्ट का यह संदेश साफ है कि “अधिकार तभी मिलेंगे जब जिम्मेदारी निभाई जाएगी।”
- मुस्लिम महिलाओं के अधिकार (Muslim Women Rights) और उनके जीवन स्तर को सुरक्षित रखने के लिए यह टिप्पणी बेहद प्रासंगिक है।
निष्कर्ष
केरल हाई कोर्ट का यह फैसला केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक बड़ा संदेश है। यह बताता है कि शादी केवल अधिकार नहीं बल्कि कर्तव्य (Responsibility) भी है। अगर पति अपनी बीवियों का ख्याल नहीं रख सकता, तो तीसरी शादी करने का ख्वाब सिर्फ और सिर्फ अन्याय होगा।
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Source: ऑपइंडिया