नेपाल का सस्पेंस खत्म: 'आयरन लेडी' सुशीला कार्की बनेंगी अंतरिम PM; भ्रष्टाचार पर युवाओं की नई उम्मीद
नेपाल की राजनीति में लंबा सस्पेंस खत्म। पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम PM नियुक्त किया गया। यह फैसला भ्रष्टाचार के खिलाफ 'जेनरेशन Z' के हिंसक प्रदर्शनों और ओली के इस्तीफे के बाद आया है। जानें कौन हैं नेपाल की पहली महिला CJ और उनके सामने क्या चुनौतियाँ हैं।

नेपाल का सस्पेंस खत्म
delhi/kathmandu
8:50 PM, Sep 12, 2025
O News हिंदी Desk
सस्पेंस खत्म! नेपाल की सत्ता संभालेगी 'आयरन लेडी' सुशीला कार्की, अंतरिम पीएम के रूप में आज रात लेंगी शपथ; भ्रष्टाचार विरोधी जंग में जेनरेशन Z की नई उम्मीद
(By: onewshindi.com डेस्क, काठमांडू)
नेपाल की राजनीति के गलियारों में पिछले कई दिनों से चल रहे हाई-वोल्टेज सस्पेंस का आखिरकार अंत हो गया है। एक ऐसे समय में जब देश अभूतपूर्व राजनीतिक और संवैधानिक संकट से जूझ रहा था, नेपाल की कमान एक ऐसे हाथ में सौंपी गई है, जिसका रिकॉर्ड न्याय और अखंडता की कसौटी पर खरा उतरा है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को देश का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, 'न्याय की शेरनी' के नाम से विख्यात कार्की आज देर रात ही अपने पद की शपथ ले सकती हैं।
यह फैसला केवल एक राजनीतिक नियुक्ति नहीं, बल्कि नेपाल के जनमानस की पुकार का परिणाम है। यह उस 'जेनरेशन Z' की विजय है, जिसने सड़कों पर उतरकर केपी शर्मा ओली के अधिनायकवादी शासन और व्यापक भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूंका था। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल के बीच लंबी और गहन चर्चा के बाद यह महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि कार्की की नियुक्ति, जनता के दबाव के सामने झुकने और देश को संवैधानिक रास्ते पर वापस लाने की दिशा में पहला निर्णायक कदम है।
ओली का पतन: जब सड़कों पर उतरी 'जेनरेशन Z'
केपी शर्मा ओली के अचानक इस्तीफे ने नेपाल की राजनीति में एक खालीपन पैदा कर दिया था, जिसे भरना आसान नहीं था। ओली सरकार के खिलाफ विरोध की आग तब भड़की, जब सरकार ने सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की। यह कदम युवाओं को इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने इसे लोकतंत्र पर सीधा हमला मानते हुए देशव्यापी हिंसक प्रदर्शन शुरू कर दिए।
इन विरोध प्रदर्शनों की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश भर में 51 लोगों की मौत हुई और 1,300 से अधिक लोग घायल हुए। ये युवा, जिन्हें 'जेनरेशन Z' कहा जा रहा है, किसी राजनीतिक दल से प्रेरित नहीं थे, बल्कि उनकी मांगें सीधे और स्पष्ट थीं: भ्रष्टाचार का अंत, भ्रष्टाचारियों को कठोर सजा और लोकतंत्र की तत्काल बहाली।
राजनीतिक विश्लेषक इस जन-विरोध को नेपाल के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ मान रहे हैं। यह विरोध इस बात का प्रमाण था कि अब नेपाल का युवा वर्ग पुरानी राजनीतिक चालों और भ्रष्टाचार के प्रति जरा भी सहनशीलता नहीं रखेगा। ओली का इस्तीफा इस जन आक्रोश का सीधा परिणाम था। देश को अराजकता से बचाने और जनता की भावनाओं का सम्मान करने के लिए, सुशीला कार्की का नाम एक निष्पक्ष और मजबूत अंतरिम नेता के रूप में उभरा। एक गुमनाम संवैधानिक विशेषज्ञ ने पुष्टि की कि कार्की को जनरेशन जेड के प्रदर्शनकारियों का व्यापक समर्थन प्राप्त है, जिससे उनकी वैधता और भी मजबूत होती है।
कौन हैं सुशीला कार्की? 'न्याय की शेरनी' का बेदाग रिकॉर्ड
सुशीला कार्की को नेपाल की राजनीतिक स्थिरता की कुंजी क्यों माना जा रहा है, इसे समझने के लिए उनकी शानदार न्यायिक यात्रा को देखना आवश्यक है।
नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश
सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश थीं। 2016 से 2017 तक उनका कार्यकाल न्यायपालिका के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। इस दौरान उन्होंने बिना किसी राजनीतिक दबाव के भ्रष्टाचार के खिलाफ कई कड़े और साहसिक फैसले सुनाए। उनकी यह निडरता ही उन्हें आज इस निर्णायक पद पर पहुँचा रही है।
भ्रष्टाचार पर सबसे बड़ी चोट: मंत्री को जेल
कार्की के कार्यकाल का सबसे साहसिक निर्णय था- तत्कालीन सूचना एवं संचार मंत्री जयप्रकाश गुप्ता को पद पर रहते हुए जेल भेजना। यह नेपाल के न्यायिक इतिहास में पहला ऐसा मामला था, जब किसी पदस्थ मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल की सलाखों के पीछे डाला गया। यह एक ऐसा कदम था, जिसने नेपाली राजनीति में एक स्पष्ट संदेश दिया कि कानून सबके लिए बराबर है, चाहे वह सत्ता में हो या विपक्ष में।
कार्की की शैक्षणिक पृष्ठभूमि भी प्रभावशाली है। उन्होंने भारत के प्रतिष्ठित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से अपनी शिक्षा पूरी की। हालांकि उनके पति, नेपाली कांग्रेस के नेता दुर्गा प्रसाद सुबेदी, 1973 के विमान अपहरण कांड से जुड़े रहे, लेकिन सुशीला कार्की की अपनी छवि हमेशा से ही भ्रष्टाचार विरोधी और निष्पक्षता की रही है। उनकी यह बेदाग पृष्ठभूमि ही उन्हें इस संकट के दौर में सबसे भरोसेमंद चेहरा बनाती है।
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संवैधानिक अनिवार्यता और 'जेनरेशन Z' की ताकत
सुशीला कार्की की यह नियुक्ति नेपाल के संविधान के अनुसार एक अस्थायी व्यवस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य देश को तब तक नेतृत्व प्रदान करना है, जब तक कि नए चुनाव नहीं हो जाते या कोई स्थायी सरकार नहीं बन जाती। हालांकि यह पद अस्थायी है, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व बहुत गहरा है।
यह नियुक्ति दर्शाती है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जब सभी राजनीतिक दल विफल हो जाते हैं, तो न्यायपालिका से आया एक बेदाग चेहरा ही देश को दिशा दे सकता है। जनरेशन Z के प्रदर्शनकारियों ने कार्की का खुले दिल से स्वागत किया है। युवाओं की यह आशा है कि कार्की अपने न्यायिक कार्यकाल की तरह ही अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में भी भ्रष्टाचार पर सबसे पहले और सबसे कठोर वार करेंगी।
जनता के दबाव का यह परिणाम दक्षिण एशिया के अन्य देशों के लिए भी एक मजबूत संदेश है कि अब सत्ता की मनमानी नहीं चलेगी और युवाओं की आवाज को अनसुना करना किसी भी सरकार के लिए आत्मघाती हो सकता है। यह घटना दर्शाती है कि लोकतंत्र की जड़ें नेपाल में कितनी गहरी हैं।
सुशीला कार्की के सामने होंगी कई बड़ी चुनौतियाँ
अंतरिम प्रधानमंत्री का पद संभालना सुशीला कार्की के लिए सम्मान के साथ-साथ कई बड़ी चुनौतियों का पुलिंदा भी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनकी नियुक्ति नेपाल को स्थिरता की ओर ले जाएगी, लेकिन आगे का रास्ता काँटों भरा है।
1. शांति बहाली और राष्ट्रीय एकता
उनका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य देश में शांति बहाल करना होगा। हिंसक प्रदर्शनों के बाद राष्ट्रीय घावों को भरने और जनता का विश्वास जीतने के लिए उन्हें तत्काल सुधारों की घोषणा करनी होगी।
2. राजनीतिक गुटबाजी का प्रबंधन
ओली के इस्तीफे के बाद नेपाली कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के बीच नए गठबंधन की संभावनाएं बढ़ गई हैं। कार्की को एक अंतरिम नेता के रूप में इन तमाम राजनीतिक गुटों को साधते हुए निष्पक्ष रूप से काम करना होगा ताकि चुनाव प्रक्रिया पर कोई आंच न आए।
3. भ्रष्टाचार पर स्थायी लगाम
सबसे बड़ी चुनौती है- भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना। उन्हें ऐसी प्रशासनिक और कानूनी व्यवस्था स्थापित करनी होगी, जो स्थायी सरकार बनने के बाद भी भ्रष्टाचार को बढ़ने से रोके।
नेपाल की राजनीति में महिलाओं का यह प्रमुख पद न केवल देश के लिए, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। कार्की की नियुक्ति ने युवाओं में एक नया उत्साह भर दिया है, जो उम्मीद कर रहे हैं कि अब उनके देश में 'न्याय' की जीत होगी। हालांकि, विपक्षी दलों ने इस नियुक्ति पर सतर्कता बरतने को कहा है, लेकिन आम राय यही है कि इस संकट के दौर में सुशीला कार्की जैसा कद्दावर और बेदाग चेहरा ही देश को अंधेरे से बाहर निकाल सकता है।
आज रात होने वाला शपथ ग्रहण समारोह एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक बन सकता है – एक ऐसा युग, जो न्याय, ईमानदारी और युवाओं की भागीदारी पर आधारित होगा। नेपाल राजनीतिक संकट की इस कहानी में, सुशीला कार्की का उदय एक नई उम्मीद की किरण लेकर आया है।