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हिंदुओं की जमीन मुसलमानों को दिलवाने के आरोप में अधिकारी गिरफ्तार

असम जमीन घोटाला: अधिकारी नूपुर बोरा गिरफ्तार, करोड़ों की संपत्ति जब्त

हिंदुओं की जमीन मुसलमानों को दिलवाने के आरोप में अधिकारी  गिरफ्तार

अधिकारी नूपुर बोरा

delhi/asam

3:27 PM, Sep 16, 2025

O News हिंदी Desk

असम जमीन घोटाला: हिंदुओं की जमीन मुसलमानों को दिलवाने के आरोप में अधिकारी  गिरफ्तार, करोड़ों की संपत्ति जब्त

असम में अवैध जमीन कब्जों पर चल रहे अभियान के बीच एक बड़ा मामला सामने आया है। राज्य की सिविल सेवा अधिकारी नूपुर बोरा को भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग के गंभीर आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने बारपेटा जिले में तैनाती के दौरान हिंदू परिवारों की जमीन गैरकानूनी तरीके से मुसलमान परिवारों को दिलवाई। इस पूरे प्रकरण ने न केवल राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है, बल्कि प्रशासनिक तंत्र की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

गुवाहाटी में सीएम विजिलेंस टीम द्वारा की गई छापेमारी में नूपुर बोरा के आवास से 90 लाख रुपये नकद और 1 करोड़ रुपये से अधिक की ज्वैलरी बरामद की गई है। अधिकारियों का कहना है कि यह संपत्ति उनकी वैध आय से कहीं अधिक है। इस खुलासे के बाद पूरे राज्य में आक्रोश और चर्चा का माहौल है।

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असम सरकार का अवैध कब्जों पर कड़ा रुख

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा लंबे समय से अवैध कब्जों के खिलाफ सख्त अभियान चला रहे हैं। उन्होंने कई बार सार्वजनिक मंचों से कहा है कि राज्य में चाहे कोई भी व्यक्ति कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, गैरकानूनी तरीके से कब्जाई गई जमीन वापस ली जाएगी।

पिछले कुछ महीनों में सरकार ने हजारों बीघा जमीन को अवैध कब्जों से मुक्त कराया है। इसी सिलसिले में नूपुर बोरा का मामला सामने आया, जिसने पूरे अभियान की साख पर गहरी चोट की है। सवाल यह उठ रहा है कि जब सरकार खुद भ्रष्टाचार और अवैध कब्जों के खिलाफ इतनी सख्त है, तो फिर एक उच्च अधिकारी इस तरह की गतिविधियों में कैसे शामिल हो सकता है?

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क्या हैं आरोप?

नूपुर बोरा पर मुख्य आरोप यह है कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर हिंदू परिवारों की जमीन को अवैध रूप से मुसलमान परिवारों के नाम आवंटित किया। इससे न केवल जमीन मालिक परिवारों को नुकसान हुआ, बल्कि स्थानीय स्तर पर सामुदायिक तनाव भी बढ़ा।

विजिलेंस टीम का दावा है कि बोरा ने इस काम के एवज में बड़े पैमाने पर घूस भी ली। यही कारण है कि उनके घर से इतनी बड़ी मात्रा में नकदी और सोने के जेवर मिले। जांच एजेंसियां अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि इस पूरे नेटवर्क में और कौन-कौन लोग शामिल हैं।

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विपक्ष का हमला

इस मामले के सामने आते ही विपक्षी दलों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि जब सरकार अवैध कब्जों पर कार्रवाई की बात करती है, तो फिर अधिकारी स्तर पर इस तरह की गतिविधियां कैसे चल रही थीं?

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार को सिर्फ कार्रवाई की घोषणा करने से नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भ्रष्टाचार करने वाले किसी भी अधिकारी को बख्शा न जाए।

वहीं, कुछ विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा कि इस पूरे मामले में केवल नूपुर बोरा ही नहीं, बल्कि कई अन्य अधिकारियों की भी भूमिका हो सकती है। ऐसे में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच कराना बेहद जरूरी है।

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जनता की प्रतिक्रिया

असम में इस खबर ने आम जनता के बीच गुस्सा और असंतोष पैदा कर दिया है। खासकर उन परिवारों के बीच, जिनकी जमीनें अवैध रूप से छिनी गईं। लोगों का कहना है कि अगर एक सिविल सेवा अधिकारी ही जनता की जमीन बेचने और बंटवाने में शामिल होगा, तो आम आदमी को न्याय कैसे मिलेगा?

सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा छाया हुआ है। कई यूजर्स ने सरकार से मांग की है कि इस पूरे मामले को फास्ट-ट्रैक कोर्ट में ले जाकर दोषियों को जल्द से जल्द सजा दी जाए।

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भ्रष्टाचार और प्रशासन की साख पर सवाल

नूपुर बोरा का मामला प्रशासनिक तंत्र की साख पर गहरी चोट है। आमतौर पर जनता उम्मीद करती है कि सिविल सेवा अधिकारी निष्पक्ष रहकर कानून के मुताबिक काम करेंगे। लेकिन जब वही अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग कर अवैध सौदों में शामिल पाए जाते हैं, तो जनता का भरोसा टूटता है।

यह घटना यह भी दिखाती है कि प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं। सरकार अगर वास्तव में अवैध कब्जों के खिलाफ सफल होना चाहती है, तो उसे सिर्फ जमीन खाली कराने तक सीमित नहीं रहना होगा, बल्कि उन अधिकारियों पर भी कार्रवाई करनी होगी जो इस तरह के मामलों को जन्म देते हैं।

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आगे की कार्रवाई

विजिलेंस टीम ने नूपुर बोरा को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है। जांच एजेंसियों का कहना है कि आने वाले दिनों में कई और खुलासे हो सकते हैं। संभावना है कि उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा।

सरकार की तरफ से भी साफ संकेत मिल चुके हैं कि किसी भी स्तर पर लापरवाही या भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा है कि "कानून से ऊपर कोई नहीं है। चाहे वह कितना भी बड़ा अधिकारी क्यों न हो, अगर उसने गलत किया है तो उसे सजा जरूर मिलेगी।"

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राजनीतिक और सामाजिक असर

यह मामला सिर्फ एक भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि इसका राजनीतिक और सामाजिक असर भी गहरा है। हिंदू परिवारों की जमीन मुसलमान परिवारों को दिलवाने का आरोप इस मुद्दे को और भी संवेदनशील बना देता है।

राज्य में पहले से ही जमीन और जनसंख्या संतुलन को लेकर कई बार बहस छिड़ चुकी है। ऐसे में इस तरह के मामले सामुदायिक तनाव को और बढ़ा सकते हैं। यही कारण है कि सरकार इस मुद्दे पर अतिरिक्त सतर्कता बरत रही है।

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निष्कर्ष

असम में नूपुर बोरा का मामला सिर्फ एक अधिकारी की गिरफ्तारी भर नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रशासनिक ढांचे की विश्वसनीयता और ईमानदारी पर सवाल खड़ा करता है। अवैध कब्जों के खिलाफ सरकार की मुहिम तभी सफल हो पाएगी जब भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाए।

यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस मामले की जांच किस दिशा में जाती है और क्या सरकार सचमुच दोषियों को सजा दिलाने में सफल होती है। फिलहाल इतना तय है कि नूपुर बोरा की गिरफ्तारी ने असम की राजनीति, प्रशासन और समाज में एक बड़ा तूफान खड़ा कर दिया है।

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