sliderimg
बड़ी खबर/न्यूज़/sc st act misuse 3 years in jail in false case

SC/ST एक्ट का दुरुपयोग: झूठे केस में 3 साल जेल काटने वाला आकाश

झाँसी के आकाश पांडेय को झूठे SC/ST केस में 3 साल जेल हुई। कोर्ट ने निर्दोष बताया लेकिन पढ़ाई, करियर और माँ-बाप सब छूट गए। पूरी रिपोर्ट पढ़ें।

SC/ST एक्ट का दुरुपयोग: झूठे केस में 3 साल जेल काटने वाला आकाश

झूठे केस में 3 साल जेल काटने वाला आकाश onewshindi

delhi

5:09 PM, Sep 10, 2025

O News हिंदी Desk

पढ़ाई छूटी, माँ-बाप मर गए… SC/ST एक्ट के झूठे केस में 3 साल जेल काटने वाले आकाश की दर्दनाक कहानी

झाँसी: "न्याय मिला, लेकिन जिंदगी तबाह हो गई…" ये लफ्ज हैं झाँसी के रहने वाले आकाश पांडेय के, जो तीन साल से ज़्यादा वक्त जेल में गुजारकर अब बरी होकर बाहर आए हैं। लेकिन आज उनकी आंखों में खुशी से ज्यादा दर्द झलकता है। कारण साफ है—जेल की सलाखों के पीछे बीते साल, पढ़ाई का छूटना, करियर का बर्बाद होना और माता-पिता की मौत का ग़म।

आकाश का मामला देश में उन तमाम चर्चाओं को हवा देता है, जिनमें SC/ST एक्ट के दुरुपयोग के सवाल बार-बार उठते रहे हैं। कानून बना था न्याय दिलाने के लिए, लेकिन झूठे केस में फँसाकर किसी निर्दोष की जिंदगी बर्बाद हो जाए तो क्या इसे न्याय कहा जा सकता है?

*****

क्या है पूरा मामला?

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना 8 जून 2018 की है। झाँसी के रहने वाले मातादीन अहिरवार की बेटी का शव फाँसी के फंदे से लटकता मिला। मामले ने तूल पकड़ा और कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने आकाश पांडेय और उसके ममेरे भाई अंकित मिश्रा के खिलाफ केस दर्ज कर लिया।

एफआईआर में गंभीर धाराएं लगाई गईं—

  1. छेड़छाड़,
  2. आत्महत्या के लिए उकसाना,
  3. SC/ST एक्ट,
  4. पॉक्सो एक्ट।

पुलिस जांच में आकाश का भाई सचिन निर्दोष निकला, लेकिन आकाश और अंकित को जेल भेज दिया गया। आकाश तीन साल से ज़्यादा जेल में रहा, जबकि अंकित एक साल बाद जमानत पर बाहर आया।

*****

जेल में बीता बचपन और टूटे सपने

जेल की सलाखों ने आकाश की जिंदगी बदलकर रख दी।

  1. पढ़ाई अधूरी रह गई, ITI की डिग्री पूरी न हो सकी।
  2. घर की जमीन-किसानी बिक गई।
  3. जमा पूंजी मुकदमेबाजी में खत्म हो गई।
  4. सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब माता-पिता बेटे की जेल में बंद रहने का सदमा बर्दाश्त न कर पाए और उनकी मौत हो गई।

आकाश कहते हैं— “जिंदगी बस जेल से बाहर आई है। लेकिन अब हर दिन लोगों की निगाहें पूछती हैं—तुम पर केस क्यों लगा था? उन सवालों का कोई जवाब मेरे पास नहीं है।”

आज आकाश को मुश्किल से 6 हजार रुपये महीना की नौकरी मिल रही है। अगर ITI पूरी कर पाते तो एक अच्छी सैलरी वाली नौकरी मिल सकती थी।

*****

कोर्ट में सच आया सामने

लंबी सुनवाई और पुलिस जांच के बाद आखिरकार सच सामने आया। कोर्ट ने पाया कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या थी। लड़की के पिता मातादीन और उसके परिवार ने मिलकर हत्या की और झूठा केस बनाकर आकाश और अंकित को फँसा दिया।

स्पेशल जज ने मातादीन के खिलाफ झूठे सबूत पेश करने का आदेश दिया। इतना ही नहीं, लड़की की मौत के बाद परिवार को जो मुआवजा मिला था, उसे भी वसूलने का निर्देश दिया गया है।

कोर्ट का फैसला आने के बाद आकाश और अंकित फूट-फूटकर रो पड़े। उनकी आंखों से खुशी के नहीं, बल्कि बर्बाद हुए सालों के आंसू निकल रहे थे।

*****

आकाश और अंकित की टूटी दुनिया

आकाश—

  1. तीन साल से ज़्यादा जेल काटने के बाद अब मामूली नौकरी कर रहे हैं।
  2. करियर और पढ़ाई बर्बाद हो चुकी है।
  3. माता-पिता की मौत का ग़म अब भी ताज़ा है।

अंकित—

  1. डिफेंस की तैयारी कर रहे थे, लेकिन पढ़ाई छूट गई।
  2. नौकरी से भी निकाल दिया गया।
  3. अब जिंदगी फिर से शून्य से शुरू करनी पड़ रही है।

विष्णु तिवारी का मामला: 20 साल बाद मिली आज़ादी

यह पहला मामला नहीं है। विष्णु तिवारी का नाम देशभर में चर्चित हुआ था। उन पर 1999 में रेप और SC/ST एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था। 20 साल तक जेल में रहने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया।

उन 20 सालों में उनका परिवार बर्बाद हो गया, कई सदस्य गुजर गए और उन्हें पैरोल तक नहीं मिली। आखिरकार जब वे बाहर आए तो जिंदगी का सबसे सुनहरा वक्त जेल की अंधेरी कोठरी में खत्म हो चुका था।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए अधिकारियों पर कार्रवाई के निर्देश दिए थे।

*****

सवाल बड़ा है: भरपाई कैसे होगी?

कानून का उद्देश्य न्याय दिलाना है, लेकिन अगर किसी निर्दोष को झूठे आरोपों में सालों जेल में रहना पड़े तो क्या सिर्फ बरी कर देना ही काफी है?

आकाश का कहना है— “जिंदगी अब पटरी पर आ ही नहीं सकती। मां-बाप को कौन लौटाएगा? पढ़ाई और करियर कौन वापस देगा? हमारे नाम पर लगे दाग को कौन मिटाएगा?”

यह सवाल सिर्फ आकाश का नहीं, बल्कि हर उस शख्स का है, जो झूठे केस और लंबी न्यायिक प्रक्रिया की वजह से अपनी जिंदगी का सबसे कीमती समय खो देता है।

*****

क्या है SC/ST एक्ट का असली उद्देश्य?

SC/ST एक्ट (अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम) का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को न्याय और सुरक्षा देना है। लेकिन जब इसका दुरुपयोग होता है तो—

  1. निर्दोष लोग फँस जाते हैं।
  2. सालों जेल में रहने को मजबूर होते हैं।
  3. समाज में बदनामी झेलते हैं।
  4. और अंततः उनकी जिंदगी तबाह हो जाती है।
*****

समाधान क्या हो सकता है?

  1. फास्ट-ट्रैक कोर्ट: ऐसे मामलों की सुनवाई जल्दी होनी चाहिए ताकि निर्दोष लोग सालों जेल में न सड़ें।
  2. झूठे आरोप पर कड़ी सजा: अगर साबित हो जाए कि आरोप झूठे थे तो आरोप लगाने वाले को सख्त सजा मिले।
  3. मुआवजा और पुनर्वास: निर्दोष साबित होने के बाद पीड़ित को मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास की व्यवस्था करनी चाहिए।
  4. सामाजिक पुनर्स्थापन: समाज में बदनामी झेलने वालों के लिए सरकारी और सामाजिक सहयोग जरूरी है।
*****

न्याय से ज्यादा जरूरी है इंसाफ

आकाश और विष्णु जैसे मामले हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि अदालत से "बरी" हो जाना ही इंसाफ नहीं है। असली इंसाफ तब होगा, जब ऐसे झूठे मुकदमों की वजह से तबाह हुई जिंदगी को फिर से पटरी पर लाने के कदम उठाए जाएं।

भारत की न्याय व्यवस्था पर भरोसा आज भी कायम है, लेकिन अगर निर्दोष लोग सालों जेल में रहने के बाद बरी हो रहे हैं तो यह व्यवस्था की बड़ी खामी है।

*****

निष्कर्ष

झाँसी के आकाश पांडेय की कहानी सिर्फ एक इंसान की व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि एक ऐसा आईना है जिसमें हमारी न्याय व्यवस्था, पुलिस जांच और कानून के दुरुपयोग की हकीकत साफ झलकती है।

अब बड़ा सवाल यही है—क्या आकाश और अंकित जैसे युवाओं की जिंदगी की बर्बादी की भरपाई किसी मुआवजे, किसी फैसले या किसी सहानुभूति से संभव है?

या फिर यह कहानी भी न्याय व्यवस्था की लंबी फेहरिस्त में एक और ‘झूठे केस का शिकार निर्दोष’ बनकर दफन हो जाएगी?

*****
headingicon

सम्बंधित खबर

Landline Number: +91-11-47517355

Follow Us:

InstagramYouTube

© Copyright O News Hindi 2025. All rights reserved.