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शरबत में थूक सही, पर ‘शरबत जिहाद’ कहना गलत? रामदेव की खरी-खरी

शरबत में थूक सही, पर ‘शरबत जिहाद’ कहना गलत? रामदेव की खरी-खरी

शरबत में थूक सही, पर ‘शरबत जिहाद’ कहना गलत? रामदेव की खरी-खरी

शरबत में थूक सही, पर ‘शरबत जिहाद’ कहना गलत? रामदेव की खरी-खरी

12:00 AM, Apr 10, 2025

O News हिंदी Desk

‘शरबत जिहाद’ पर बवाल: बाबा रामदेव की टिप्पणी से मचा तूफान, क्या वाकई है इसके पीछे कोई साजिश?

क्या है ‘शरबत जिहाद’ विवाद?

योग गुरुबाबा रामदेवएक बार फिर चर्चा के केंद्र में हैं। इस बार मामला उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए एक नए शब्द“शरबत जिहाद”को लेकर है, जिसे लेकरइस्लामी कट्टरपंथियोंका विरोध सामने आ रहा है। बाबा रामदेव ने पतंजलि के एक प्रचार वीडियो में कहा कि एक प्रसिद्ध शरबत बेचने वाली कंपनी अपने मुनाफे का हिस्सा मस्जिद और मदरसे बनाने में खर्च करती है।

पतंजलि का वीडियो और सोशल मीडिया पर हलचल

4 अप्रैल 2025 कोपतंजलि प्रोडक्ट्सके ऑफिशियल फेसबुक पेज पर एक वीडियो पोस्ट किया गया, जिसमें कैप्शन था –

वीडियो के वायरल होते हीफेसबुक पर 3.7 करोड़ से ज्यादा बारदेखा गया। कई लोग बाबा कीखुलकर बोलने की सराहनाकर रहे हैं, वहीं कुछ लोगों ने इसेधार्मिक भेदभावबताकर विरोध जताया है।

विरोध का मोर्चा: जुबैर, हबीब और वाजिद की प्रतिक्रियाएँ

सोशल मीडिया परज़ुबैर, हबीब मसूद अल-अदरूस और वाजिद शेखजैसे इस्लामी समर्थक एक्टिविस्ट्स ने बाबा रामदेव पर हमला बोला। ज़ुबैर ने कहा:

जबकि हबीब ने इस बयान को “धार्मिक ध्रुवीकरण” की कोशिश बताया।

‘थूक जिहाद’ और ‘पेशाब जिहाद’ पर क्यों मौन थे ये लोग?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जो लोग आज‘शरबत जिहाद’शब्द पर बौखलाए हैं, उन्होंने तब क्यों चुप्पी साध ली जबथूक और पेशाब मिलाकरजूस बेचने के मामले सामने आए?

  1. सितंबर 2024में उत्तर प्रदेश केशामलीजिले मेंजूस विक्रेता आसिफका वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह जूस में थूकता दिखा।
  2. इससे पहलेगाज़ियाबादमें एक विक्रेता पर पेशाब मिलाने का आरोप लगा और पुलिस ने मौके सेपेशाब भरा कंटेनरबरामद भी किया।

इन मामलों में इन तथाकथित प्रगतिशीलों नेकभी आवाज़ नहीं उठाई, उल्टा ऐसे मामलों को उजागर करने वालों पर ही सवाल खड़े किए।

क्या वाकई 'शरबत जिहाद' एक मार्केटिंग रणनीति है?

बाबा रामदेव के समर्थकों का मानना है कि यह बयानबाज़ार में देशी उत्पादों को बढ़ावा देनेकी कोशिश है। वहीं आलोचकों का तर्क है कि इससेधार्मिक ध्रुवीकरणको बढ़ावा मिल सकता है।

लेकिन असल सवाल यह है:

क्या हिंदुस्तान में अब सच बोलना भी 'जुर्म' बनता जा रहा है?

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