Supreme Court on Firecracker Ban: पटाखों पर देशव्यापी रोक की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यदि पटाखों पर बैन लगाना है तो केवल NCR नहीं बल्कि पूरे भारत में प्रतिबंध होना चाहिए। जानें हरित पटाखों पर कोर्ट की टिप्पणी।

Supreme Court on Firecracker Ban
delhi
5:50 PM, Sep 12, 2025
O News हिंदी Desk
सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी: पटाखों पर बैन सिर्फ NCR नहीं, पूरे देश में होना चाहिए
नई दिल्ली। पटाखों पर बैन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम और दूरगामी टिप्पणी की। अदालत ने साफ कहा कि यदि पटाखों पर प्रतिबंध लगाना है तो इसे केवल दिल्ली-एनसीआर तक सीमित न रखकर पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि प्रदूषण केवल राजधानी क्षेत्र की समस्या नहीं है, बल्कि यह देशभर के शहरों और कस्बों को प्रभावित करता है। इसलिए किसी भी नीति का दायरा पैन-इंडिया होना चाहिए।
एनसीआर में ही क्यों, पूरे देश को चाहिए स्वच्छ हवा
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि अगर दिल्ली-एनसीआर के निवासियों को स्वच्छ हवा का अधिकार है, तो देश के अन्य शहरों और गांवों के लोगों को यह अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, “मैं पिछले साल सर्दियों में अमृतसर गया था। वहां प्रदूषण की स्थिति दिल्ली से भी बदतर थी। अगर प्रतिबंध लगाना है, तो पूरे देश में लगाइए, केवल दिल्ली के लिए क्यों?”
इस टिप्पणी ने साफ कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट अब पटाखों के मुद्दे को केवल NCR तक सीमित नहीं रखना चाहता। अदालत का मानना है कि स्वास्थ्य और स्वच्छ हवा का अधिकार सभी नागरिकों को समान रूप से मिलना चाहिए।
सीएक्यूएम को नोटिस, दो हफ्ते में मांगा जवाब
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के 3 अप्रैल के उस आदेश से जुड़ा है जिसमें दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री, भंडारण, परिवहन और निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। इसी आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को नोटिस जारी किया है और दो सप्ताह में विस्तृत जवाब मांगा है।
पीठ ने केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाली अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि इस मामले पर सीएक्यूएम से विस्तृत रिपोर्ट प्राप्त करें।
हरित पटाखों पर उठे सवाल
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह, जो न्याय मित्र के रूप में पेश हुईं, ने कहा कि “कुलीन वर्ग तो प्रदूषण होने पर दिल्ली छोड़कर बाहर चले जाते हैं। असली परेशानी आम जनता को होती है।”
इसके जवाब में सरकार की ओर से बताया गया कि राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) ‘हरित पटाखों’ (Green Crackers) की व्यवहार्यता की जांच कर रहा है। पटाखा निर्माताओं की ओर से पेश वकील ने सुझाव दिया कि नीरी को अनुमेय रासायनिक संरचना तय करनी चाहिए ताकि उद्योग उसी के अनुसार सुरक्षित पटाखे तैयार कर सके।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने साफ किया कि जब तक यह सुनिश्चित नहीं हो जाता कि हरित पटाखों से प्रदूषण न्यूनतम स्तर तक सीमित रहेगा, तब तक पुराने आदेश पर पुनर्विचार का कोई सवाल ही नहीं उठता।
स्वास्थ्य का अधिकार सर्वोपरि
अदालत ने अपने आदेश में एक बार फिर दोहराया कि स्वास्थ्य का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों का मौलिक अधिकार है। इसमें प्रदूषण-मुक्त वातावरण में जीने का अधिकार भी शामिल है।
पीठ ने कहा कि पिछले छह महीनों में हमने ऐसे कई आदेश दिए हैं, जो दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण की भयावह स्थिति को उजागर करते हैं। अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि नीति बनाते समय केवल एक शहर या एक वर्ग को ध्यान में नहीं रखा जा सकता।
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पटाखों पर बैन और त्योहारों की चिंता
भारत में दीपावली, नए साल, शादियों और अन्य समारोहों में पटाखों का इस्तेमाल परंपरा का हिस्सा रहा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि परंपरा से ज्यादा महत्वपूर्ण नागरिकों का स्वास्थ्य है।
विशेषज्ञों का मानना है कि पटाखों से होने वाला ध्वनि प्रदूषण और वायु प्रदूषण बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा व हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए बेहद खतरनाक होता है। खासकर सर्दियों में प्रदूषण के स्तर पहले से ही ऊंचे होते हैं, ऐसे में पटाखों से हालात और बदतर हो जाते हैं।
प्रदूषण की समस्या केवल दिल्ली की नहीं
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उस धारणा को तोड़ती है कि प्रदूषण सिर्फ दिल्ली-एनसीआर की समस्या है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के कई शहरों में भी वायु गुणवत्ता का स्तर खतरनाक श्रेणी में पहुंच चुका है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 132 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता गंभीर या खराब श्रेणी में दर्ज की गई है। ऐसे में यदि पटाखों पर बैन की नीति केवल NCR तक सीमित रही, तो यह अन्य राज्यों के नागरिकों के साथ अन्याय होगा।
पटाखा उद्योग पर असर
भारत में पटाखों का बड़ा उद्योग है, खासकर तमिलनाडु के शिवकाशी जैसे शहरों में। यहां लाखों लोगों की आजीविका पटाखा निर्माण पर निर्भर है। पटाखों पर देशव्यापी बैन से इस उद्योग पर बड़ा असर पड़ सकता है।
हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि यदि पटाखा उद्योग हरित तकनीक अपनाए और कम प्रदूषण वाले पटाखे बनाए, तो रोजगार भी बचेंगे और पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। अदालत ने भी नीरी को इसी दिशा में सुझाव दिए हैं।
आगे क्या?
अब पूरा मामला सीएक्यूएम और नीरी की रिपोर्ट पर निर्भर करता है। यदि रिपोर्ट में यह साबित होता है कि हरित पटाखे प्रदूषण को काफी हद तक कम कर सकते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट आंशिक छूट दे सकता है। अन्यथा, पटाखों पर देशव्यापी प्रतिबंध लगने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने पटाखों पर बहस को एक नया आयाम दिया है। अब यह सिर्फ NCR तक सीमित मुद्दा नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर लागू होने वाली नीति का प्रश्न बन गया है। अदालत ने साफ कर दिया है कि स्वच्छ हवा और स्वस्थ जीवन का अधिकार सभी भारतीयों का है।
त्योहारों की परंपराएं अपनी जगह हैं, लेकिन जब बात स्वास्थ्य और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की हो, तो समझौता संभव नहीं। अब देखने वाली बात यह होगी कि केंद्र सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग क्या कदम उठाते हैं और नीरी की रिपोर्ट आने के बाद अदालत का अंतिम निर्णय क्या होता है।