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तेजस्वी यादव का नेतृत्व डगमगाया? लालू के वफादार यादव नेता छोड़ रहे आरजेडी का साथ | Bihar Election 2025

बिहार चुनाव 2025 से पहले आरजेडी में भूचाल! लालू यादव के वफादार राजबल्लभ यादव और प्रह्लाद यादव ने पार्टी छोड़ी। क्या तेजस्वी यादव का नेतृत्व कमजोर पड़ रहा है? क्या यादव वोट बैंक में दरार पड़ने लगी है? पढ़ें पूरी खबर।

तेजस्वी यादव का नेतृत्व डगमगाया? लालू के वफादार यादव नेता छोड़ रहे आरजेडी का साथ | Bihar Election 2025

Lalu Yadav-Tejasvi Yadav

bihar

4:18 PM, Sep 7, 2025

O News हिंदी Desk

तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर संकट: लालू के वफादार यादव नेता क्यों छोड़ रहे आरजेडी का साथ?

पटना, 7 सितंबर 2025। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में उठापटक तेज हो गई है। लालू प्रसाद यादव के ‘एम-वाई समीकरण’ (मुस्लिम-यादव MY गठजोड़) की बुनियाद पर खड़ी यह पार्टी अब उसी समीकरण में सेंध लगने की खबरों से घिरी है। लालू के पुराने वफादार यादव नेता एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे हैं और यह सवाल तेज हो गया है कि क्या तेजस्वी यादव का नेतृत्व डगमगाने लगा है?

कौन-कौन छोड़ रहे हैं आरजेडी का साथ?

हाल ही में नवादा के बाहुबली और लालू के करीबी रहे राजबल्लभ यादव और लखीसराय के प्रह्लाद यादव ने आरजेडी से किनारा कर लिया। यही नहीं, राजबल्लभ यादव की पत्नी और नवादा की सांसद विभा देवी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गया रैली में मंच साझा करती दिखीं। इन घटनाओं ने यह संकेत साफ कर दिया कि यादव वोट बैंक में दरार गहराने लगी है।

विशेष बात यह है कि प्रह्लाद यादव, जो आरजेडी के संस्थापक सदस्यों में रहे और 1995 से सूर्यगढ़ा सीट से लगातार विधायक रहे, उन्होंने भी पार्टी को अलविदा कह दिया। यह आरजेडी के लिए बड़ा झटका है क्योंकि लालू की राजनीति की जड़ें इसी यादव वोट बैंक पर टिकी रही हैं।

विवाद ने बढ़ाई मुश्किलें

राजबल्लभ यादव ने पार्टी छोड़ने के बाद तेजस्वी यादव की पत्नी राजश्री को लेकर विवादित बयान दिया और उन्हें ‘जर्सी गाय’ तक कह डाला। इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और यह भी जाहिर करता है कि नाराजगी केवल टिकट बंटवारे तक सीमित नहीं, बल्कि गहरे व्यक्तिगत स्तर पर भी है।

जानकार क्या कहते हैं?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम तीन बड़ी वजहों से हो रहा है:

  1. पुरानी बनाम नई पीढ़ी का टकराव – लालू यादव के जमाने में पनपे नेता खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे हैं। तेजस्वी के नए नेतृत्व में उनकी पकड़ कमजोर हो गई है।
  2. एनडीए की रणनीति – बीजेपी और जेडीयू लंबे समय से यादव वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। विभा देवी का मोदी के मंच पर दिखना इस रणनीति का संकेत माना जा रहा है।
  3. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा – राजबल्लभ यादव पर आपराधिक छवि का दाग है और आरजेडी उन्हें टिकट देने से हिचकिचा रही थी। वहीं, प्रह्लाद यादव भी अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे थे।

वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार कहते हैं, “आरजेडी में आज भी 70 से ज्यादा विधायक हैं, लेकिन उनमें यादव नेताओं की संख्या सीमित है। लालू के पुराने सिपाही धीरे-धीरे दूर जा रहे हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक अब पूरी तरह सुरक्षित नहीं है।”

चुनावी असर क्या होगा?

बिहार की राजनीति में यादव वोट बैंक की भूमिका निर्णायक मानी जाती है। यदि आरजेडी के भीतर से ही यादव नेता पार्टी छोड़ते रहे, तो एनडीए को इसका सीधा फायदा मिल सकता है। इससे न सिर्फ महागठबंधन की ताकत कमजोर होगी, बल्कि आरजेडी का वह ‘एम-वाई फॉर्मूला’ भी डगमगा सकता है, जिसने दशकों तक पार्टी को सत्ता दिलाई।

निष्कर्ष

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले आरजेडी के भीतर उठता यह भूचाल पार्टी के लिए खतरे की घंटी है। लालू यादव के वफादार एक-एक कर किनारा कर रहे हैं और तेजस्वी यादव का नेतृत्व सवालों के घेरे में है। अगर इस संकट का समाधान जल्द नहीं निकला, तो आरजेडी को चुनावी मैदान में बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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